मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाप्यार में उलझ गए हैं

प्यार में उलझ गए हैं

इंकार, इकरार और इंतजार में उलझ गए हैं ।
हम खामखां ही प्यार में उलझ गए हैं ।।
वो खोल चुके हैं गिरहें गलतफहमी की सारी ।
और हम उदासी के तार में उलझ गए हैं ।।
नहीं जानते म’आनी इश्क का ये बच्चे ।
सब नादां हवस के बाजार में उलझ गए हैं ।।
कर रहें हैं तिजारत जुल्म और नफरत की ।
खुदाया क्यूं ऐसे व्यापार में उलझ गए हैं ।।
-डॉ. वासिफ काजी, इंदौर

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