मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : भलाई के जमाना

अवधी व्यंग्य : भलाई के जमाना

एड. राजीव मिश्र मुंबई

आज बहोरन के बिटिया बेलवा के बियाह है पूरा घर नात-रिश्तेदारन से भरा है। केउ घर में भागा जात है तो केऊ फटफटिया लिहे बजार भागि रहा है। घर लड़की के फुफ्फा, मामा अउर मउसा से भरा है। बहोरन के बड़का दमाद भी आइ गयें हैं, पर उ घर के एक कोठरी में मसहरी पर फूल वाले बिस्तरा पर सढ़ुआईन अउर सरहज से घिरे बइठे हैं। बाहर हलुआई खाना अउर मिठाई बनाय रहे हैं। एक ओर चाशनी में रसगुल्ला पौढ़ि रहा है तो दूसरी ओर बहोरन के जीजा मतलब बेलवा के फुफ्फा सदरी में दूनौ हाथ घुसेरे हलुआई के लगे आईके ठाड़ि होइ गए। का हो मिस्त्री, काव बनि रहा है? रसगुल्ला बनि गवा है अब गुलाबजामुन के तैयारी हय। रसगुल्ला नरम बना है न? अब अपने हिसाब से तो नीकय बनाये हई। हाँ, बढ़िया काम किहो, कउनउ गड़बड़ी न होये के चाही, हम बहोरन के जीजा हैं। ठीक है मालिक कहिके हलुआई अपने काम में लगि गवा। तब तक बहोरन के साढ़ू मतलब बेलवा के मउसा मूड़े में गमछा लपेटे पहुँचे अउर बोले, का हो भंडारी? सब ठीक-ठाक चलि रहा है न, खाना में कउनउ शिकायत न होय के चाही, खाना-पीना के सब जुम्मेदारी हमरी है। आखिर हमहूँ लड़की के मउसा हैं। लड़की के मामा अलगय बवाल काटि रहे हैं। ऐ टेंट मास्टर! ई फटहा पर्दा निकारो इहाँ से, बेइज्जती करिहौ का? जब से आएं हैं एक टांग पर खड़े हैं पर बिना मामा के ढंग से कउनउ कामय नही होत हय। यहि तीनौ रिश्तेदारन से टेंट वाले, बिजली वाले, हलुआई सब उबियाय गयें। आखिर में हलुआई हिम्मत कइके फेरन से कहिस, अइसा है दद्दा, काम बाद मा होइ पहिले ई फाइनल करो यहि शादी में मालिक के है? जब से आवा हई, कान पाका होइ गवा है। ई करो, उ करो, एक काम करो ई लो आपन बयाना, हमसे काम न होई पाई। इतना सुनतय फेरन ई त्रिमूर्ति के सामने हाथ जोड़ि के ठाड़ि भये अउर बोले अइसा है भइया! अब एक जगह बैठि जाओ अउर जब तक बरात न आइ जाय उठो नही। इतना सुनतय रिश्तेदार भुनभुनाय शुरू कइ दीहें, हम तो आपन बिटिया समझि के भागि रहे हैं पर भलाई के जमाना नही है।

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