मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : पलटू-पुराण

अवधी व्यंग्य : पलटू-पुराण

एड. राजीव मिश्र
मुंबई

पलटू जब पैदा भये तो बाबूजी ओनकर नामै नेताजी रखि दिहेन। नेताजी सुनत-सुनत नेताजी के खून में नेताई अइसन बसि गई कि स्कूल से लइके कॉलेज तक पढ़ाई पे कम खुद के ब्रांडिंग पे ज्यादा ध्यान दिहें। नेताजी के राजनीति में आये बीस बरिस होइ गवा पर आज तक उ वार्ड मेंबर से आगे नही निकरि पाए। अइसन नही है कि उ मेहनत-मशक्कत नही किये, खूब मेहनत किये। इहाँ तक कि वार्ड अध्यक्ष से लइके राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के जूता तक उठावै के तैयार बइठे रहे पर लगि रहा है उनके किस्मत के सितारा एकदम्मे से डूबि गय अहइ। जब केहू दूसरे नेता के लडकद खादी कुरता और धोती पहिन के लालबत्ती में जात देखत थें तो मानो करेजा पर साँप लोटि जात है। नेताजी एक दिन गाँव के पुरनिया समझाइन देखो बचवा पराईवेट नौकरी और नेतागिरी एक्वैâ तरह से है जब तक पार्टी चेंज न करिहौ तुम्हार बिकास नही होइ पाई, परिवर्तन संसार के नियम है इहमा एक पाल्टी के हाथ पकरे रहियो तो जिनगी भर वार्ड से आगे नही जाय पइहौ। नेताजी होत सबेरे इस्तीफा लइके पाल्टी कार्यालय पहुँचि गए और जाए से पहिले दुइ-तीन पत्तरकार भी साथ लेइ गए। दूसरे दिन अखबार मा नेताजी के इंटरव्यू छपा, ‘परदेश के विकास के खातिर नेताजी का इस्तीफा’ संझा होत नेताजी दूसर पाल्टी में वार्ड अध्यक्ष बनि गए। दुइ बरिस में उलटत-पलटत परदेश कार्यकारिणी के अध्यक्ष होइ गए। बाद में कड़ी मेहनत के बल पर नेताजी विधायक होइ गए, पर देश के जनता तक के खियाल नही रहिगा कि नेताजी कउने पाल्टी में हैं अउर कउने से इस्तीफा देइ दीहें। जनरल नॉलेज के किताब छापे वालेन के तो नेताजी काल होइ गयें, जब तक किताब छपय, नेताजी पलटी मारिके दूसरे पाल्टी में होइ जात रहें। कल प्रेस कॉप्रâेंस में एक पत्तरकार नेताजी से पुछि बइठा, नेताजी आप यतने बार पलटी मारत हौ, ई तो अवसरवादी राजनीति है यहिपे आप का कहिवौ? देखो, हम तो प्रदेश के विकास के लिए बचनबद्ध हूँ, आखिर जनता के वोट के प्रति कउनउ जिम्मेदारी है कि नही है? जब प्रदेश के मुख्यमंत्री हर साल पलटी मार सकते हैं तो हम जनता के बिकास के लिए काहे पलटी नही मार सकते? नेताजी जबाब देइके पत्तरकार के सदमा मे डारि गाड़ी की तरफ बढ़ि गयें।

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