मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : ट्रैफिक सिग्नल

अवधी व्यंग्य : ट्रैफिक सिग्नल

एड. राजीव मिश्र
मुंबई

नोखई सुबह ७ बजे से उठि के मानो मशीन होइ गये हो। फटाफट नहाय-धोय के तैयार होइके डिब्बा में चार ठो रोटी लइके लपक के बस इस्टाप पे पहुँचि गए। ५ बस के बाद एक बस आई जेहिमा नोखई जइसे-तइसे घुसि पाए। बस के अंदर गलियारा में एक तरफ लटकि के कइसउ कुर्ला पहुँचे और दुइ मिनट बाद सीएसटी वाली ट्रेन मा पूरी ताकत से चढ़े पर जेतनी ताकत से नोखई चढ़े ओहिके बीस गुना ताकत से भीड़ ओनके अइसन चढ़ाइस कि नोखई ओहि तरफ वाले दरवाजा से दुइ तिहाई बाहेर होइ गए। कइसउ ट्रेन के खंभा पकड़ि के खड़ा होय के जगह बनाये रहे तब तक दादर आई गवा अउर दादर उतरय वाली भीड़ अपने साथ मा नोखई के भी उतार लिहिस। जब तक नोखई समझ पाए तब तक गाड़ी पलेटफारम से डोलि गई। पाँच मिनिट बाद दूसरि ट्रेन आई कइसउ मशक्कत से नोखई फिर चढ़े यहि बार जहाँ खड़े होए के जगह मिली उहाँ एक पैर रखि पाए दूसरे के जगहय नही बची। थोड़ी देर चले के बाद बड़ी मुश्किल से दुसरका पैर रखि पाए तो पहिला के जगह चली गई। तब तक नोखई के आगे खड़ा मनई आपन देह मसकय लागि, काफी देर के बाद नोखई से कहिस, भईया जरा पीठ खजुइहौ का? नोखई कातर भाव से बोले, भईया हमरा एक पैर के चप्पल निकरि गवा है उ तो हम पहिन नही पाये अब तुम्हारी पीठ कहाँ से खजुआई। इतने देर में सीएसटी आई गवा। नोखई के भीड़ अइसन उतारिस की उनके बुशट के दुइ ठो बटन काज फारत टूटि गवा। उतरे के बाद अइसन लगा कि नोखई के केउ लथेरि-लथेरि के हुरकुच्चे होय। जइसे टेशन से बाहेर निकरे, गाँव से उनके लंगोटिया यार बुधई के फोन आइ गवा। का हो नोखई कहाँ हौ भईया? कुछ अता-पता नही चलि रहा है। का बताई बुधई मुंबई मा ट्रैफिक बहुत लागि जात है। ८ बजे से कार में बइठे-बइठे जीव उबियाई गवा है। अच्छा सुनो फोन रक्खित हय, सिग्नल आई गवा है कहिके नोखई अपने बुशट के नीचे गाँठ मारिके काम पे निकरि गए।

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