बुधई चलेनि कमाइ शहर मऽ,
सेतुआ नून लिहेन गठियाइ।
छोटका भयवा सइकिल लइके,
चउराहा तक छोड़ेसि जाइ।।
घंटन खड़ा रहेन वहिं बुधई,
गाड़ी एक्कउ दरेन न आइ।
घाम कपारे पै चढ़ि चोकरइ,
झट से गमछा लिहेन नवाइ।।
कइयउ कोस गयेनि तब पैदल,
एक खटहरा बस तब आइ।
एतनी भीड़ि रही बस म्या,
जस ठूंसि-ठूंसि भूंसा भरि जाइ।।
कइसउ-कइसउ टेसन पहुंचेन,
टिकट के पइसा टेटेन नाइ।
चढ़ि बइठेन चालू डिब्बा म्या,
निचवइ गमछी लिहेन बिछाइ ।।
चारिउ खाना चित जेस पसरेनि,
कचरत की कुलि मनइन जांइ।
झक झक झक झक चली रेल,
एतने में टी टी पहुंचा आइ।।
बुधई पकड़ा गयेनि बेचारू,
अगले टेसन दिहेसि उतारि।
किस्मत फुटीऽ रहीऽ बुधई के,
घरे के ओरीऽ लउटेन जाइ।।
-पंकज तिवारी