अरुण कुमार गुप्ता
सातवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनमें वाराणसी की सीट भी शामिल है, जहां से नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में भी इसी चरण में चुनाव होना है। भाजपा के लिए दिक्कत गाजीपुर, घोसी और बलिया की सीट पर होने वाली है। इनमें गाजीपुर और घोसी की सीट पर भाजपा पिछला चुनाव हार भी चुकी है। घोसी, बलिया और गाजीपुर की लोकसभा सीट भाजपा के लिए मुश्किल इसलिए भी मानी जा रही है, क्योंकि हालिया यूपी चुनाव २०२२ में इन इलाकों में आने वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा की हालत काफी खस्ता रही थी। इन ३ लोकसभा इलाकों में १५ विधानसभा की सीटें हैं। इनमें से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा जीत पाई थी, बाकी सभी सीटें विपक्षी दलों कांग्रेस, सपा और बसपा के पास गई थीं। घोसी की सीट पर भाजपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा के अरविंद राजभर को टिकट मिला है। सपा ने यहां राजीव राय को उतारा है, जो इलाके में प्रभावशाली भूमिहार वोटों को साधकर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। गाजीपुर की सीट पर अफजाल अंसारी का कब्जा है। वह इस बार सपा से उम्मीदवार हैं। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद यहां हो रहे इस चुनाव में यह भी एक मुद्दा बनकर खड़ा है। मुख्तार की मौत के बाद उनके जनाजे में जिस तरह से भीड़ इकट्ठी हुई थी, वो यह बताने के लिए काफी है कि चुनाव में मुख्तार अंसारी वैâसे मरने के बाद भी अपना असर डाल सकते हैं। बलिया पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट है और भाजपा ने यहां से उनके बेटे नीरज शेखर को ही चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि, सपा ने यहां से सनातन पांडेय को उम्मीदवार बनाकर खेला कर दिया है। इस सीट पर ३ लाख से ज्यादा ब्राह्मण वोटर्स हैं। ढाई लाख यादव, ढाई लाख राजपूत और तकरीबन इतने ही दलित मतदाता भी हैं। ऐसे में इस सीट पर सपा के ब्राह्मण-यादव समीकरण से भाजपा को अपनी इस जीती हुई सीट पर बड़ा झटका लग सकता है।
सलेमपुर में मतदाता `साइलेंट’
देवरिया जिले की सलेमपुर लोकसभा सीट से भाजपा ने रविंद्र कुशवाहा पर भरोसा जताया है। कुशवाहा का सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के सपा से मैदान में उतरे पूर्व बसपा सांसद रमाशंकर राजभर से है। राजभर, यादव और मुस्लिम का समीकरण बनाकर सपा इस सीट को छीनने की पूरी कोशिश में जुटी हुई है। बसपा ने भीम राजभर को मैदान में उतारकर राजभर बिरादरी के वोटों में बंटवारे की पटकथा लिख दी है। वैसे दो राजभर प्रत्याशियों के बीच खड़े बिरादरी के मतदाता खामोशी से हवा का रुख भांप रहे हैं यानी जिधर का पलड़ा भारी होगा, उनका झुकाव उधर ही होगा। बसपा को इस सीट पर दो बार सफलता मिली और दोनों बार उसे राजभर प्रत्याशी उतारने का फायदा मिला। १९९९ में बब्बन राजभर और २००९ में रमाशंकर राजभर को मिली सफलता को देखते हुए ही शायद उसने एक बार फिर उन्हीं समीकरणों को आजमाने की कोशिश की। २००९ में उसे जीत दिलाने वाले रमाशंकर राजभर अब साइकिल पर सवार हैं तो दूसरी तरफ भीम राजभर बसपा के काडर वोटर के साथ ही राजभर मतदाताओं में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार के चुनाव में भाजपा को गुटबाजी परेशान कर रही है। भाजपा में अंतर्विरोध है। एक धड़ा मान रहा है कि लगातार एक ही परिवार से प्रत्याशी बनाने से संगठन को नुकसान हो रहा है। लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ी जातियों का दबदबा है। यहां कुर्मी व कुशवाहा समाज के करीब १८ फीसदी मतदाता हैं। सलेमपुर में मतदाताओं के साइलेंट मोड में रहने के कारण भाजपा परेशान नजर आ रही है। ऐसे में चुनाव परिणाम बताया कि जीत का सेहरा किसके सर बंधता है?
सपा की घेराबंदी में फंसी अनुप्रिया
मां विंध्यवासिनी देवी के प्राचीन मंदिर से देश के धार्मिक पर्यटन में अहमियत रखने वाले विंध्य क्षेत्र के मिर्जापुर में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां चरम पर हैं। एनडीए गठबंधन की उम्मीदवार अनुप्रिया पटेल को इस बार सपा गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। दूसरे छोटे दल भी अनुप्रिया को घेरने की कोशिश में हैं। मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीट पर भाजपा सहित एनडीए के सहयोगी दलों का ही कब्जा है। मिर्जापुर, चुनार व मड़िहान सीट से भाजपा, जबकि सुरक्षित सीट छानबे से अपना दल (एस) की रिंकी कोल विधायक हैं। सांसद पकौड़ी लाल कोल की बहू रिंकी राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से तो मझवां से निषाद पार्टी के विधायक डॉ. विनोद कुमार बिंद को भाजपा ने भदोही लोकसभा सीट से टिकट दिया है। सवर्णों में सर्वाधिक ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की संख्या है। मुस्लिम आबादी लगभग आठ प्रतिशत है। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के मिलने के बाद भी रिकॉर्ड मतों से जीतने वाली अनुप्रिया के सामने इस बार कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती दिखाई दे रही है। मिर्जापुर की मझवां सीट से तीन बार बसपा से विधायक रहे सपा प्रत्याशी रमेश बिंद के साथ बिंद बिरादरी तो है ही, क्षेत्रवासियों के लिए जाना-पहचाना चेहरा होने से वंचित व अन्य पिछड़ी जातियों में भी उनका प्रभाव है। सपा प्रत्याशी होने से मुस्लिम व यादव भी उन्हीं के साथ दिखाई देता है। ऐसे में सपा की मजबूत घेराबंदी में अनुप्रिया पटेल बुरी तरह उलझी हुई नजर आ रही हैं।