अरुण कुमार गुप्ता
बलिया उत्तर प्रदेश की आखिरी लोकसभा सीट है। उसके बाद गंगा पार से बिहार शुरू हो जाता है। बलिया भी उन ५७ लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां आखिरी चरण में शनिवार को मतदान हुए। बीजेपी से नीरज शेखर और एसपी से सनातन पांडेय इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार हैं। बलिया के बारे में बहुत सारी अच्छी बाते सुनने-कहने के लिए हैं, लेकिन एक तकलीफ बलिया के लोगों को हमेशा रहती है। वैसे पूरे पूर्वांचल में ठाकुर-ब्राह्मण की घेराबंदी रही है। बलिया एक ऐसी लोकसभा सीट रही है, जिसे ब्राह्मण बहुल बताया जाता है। दावा किया जाता है कि इस पूरे लोकसभा में १५ फीसदी वोटर ब्राह्मण हैं, लेकिन ये भी एक हकीकत है कि यहां से कभी भी ब्राह्मण सांसद नहीं रहा है। १९७७ से २००७ के बीच नीरज शेखर के पिता चंद्रशेखर अकेले ही इस सीट से ८ बार सांसद रह चुके हैं। अगर यहां से चुने जाने वाले सांसदों की जाति की चर्चा की जाए तो शुरुआती दौर में तीन बार कायस्थ समुदाय के नेताओं को यहां से सांसद बनने का मौका मिला, जबकि १४ बार क्षत्रिय यानी राजपूत समुदाय के और एक दफा यादव समुदाय के जगन्नाथ चौधरी सांसद हुए हैं। कहने का आशय ये है कि यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी कभी नहीं जीता है। इस बार इस जुमले को भी ब्राह्मणों को लामबंद करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यह मिथक टूटता है कि नहीं।
प्रत्याशी नहीं, जातियां लड़ रहीं चुनाव
गाजीपुर के सियासी मिजाज के सवाल पर शायर अबरार कासिफ का ये शेर, `मैं अपने दोनों तरफ एक सा हूं तेरे लिए, किसी से शर्त लगा फिर मुझे उछाल के देख..’ उछाल देते हैं। कहते हैं, बस ऐसा ही है अपना गाजीपुर। यहां की गलियों में आपको वोटर नहीं मिलते। यहां मिलते हैं तो सिर्फ भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, राजभर, राजपूत, दलित, हिंदू और मुसलमान। यहां टिकट जाति के नाम पर तय होता है तो वोट भी जाति और धर्म के नाम पर मिलता है यानी सिक्के के दोनों ओर जाति और धर्म ही मिलेगा। समीकरणों को समझने के लिए चुनावी बातों से पहले समर के योद्धाओं की चर्चा जरूरी है। भगवा खेमे ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी माने जाने वाले पारसनाथ राय पर दांव लगाया है। वहीं २०१९ में बसपा से दिवंगत मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी बदली परिस्थितियों में इस बार साइकिल पर सवार हैं। बसपा से डॉ. उमेश कुमार सिंह मैदान में हैं। गाजीपुर की फिजा में जिस तरह के सवाल हैं, उन सवालों पर मतदाताओं के जैसे बोल हैं, उन सबका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यहां भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला है। अलबत्ता बसपा लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। गाजीपुर का जिक्र आते ही लोगों को याद आते हैं विश्वनाथ सिंह गहमरी। १९६२ में सांसद बने गहमरी ने सिर्फ गाजीपुर ही नहीं, पूरे पूर्वांचल के हालात, भुखमरी, बेरोजगारी के दर्द को जिस तरह से संसद में रखा था, वह सब कुछ लोगों की जुबां पर होता है। भुखमरी की पीड़ा को रखते हुए उन्होंने कहा था, स्थिति ऐसी है कि क्षेत्र की एक बड़ी आबादी के लिए बैल के गोबर से छानकर निकाला अनाज ही भोजन का एकमात्र सहारा है। यह सब सुन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से लेकर हर सदस्य की आंखें नम हो गई थीं। उसी दिन आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आकलन के लिए पटेल आयोग का गठन हुआ, जिसने पूर्वांचल के विकास की नींव तैयार की। पूर्वांचल विकास के आकाश में उड़ान भरने को अपना पर फड़फड़ा ही रहा था कि माफिया, गैंगवार, लूट और छिनैती के कलंक उसकी पहचान के साथ पैबस्त होते चले गए। चुनावी माहौल के सवाल पर लोग कहते हैं, भाजपा प्रत्याशी को तो कोई पहचानता ही नहीं है। कब तक मोदी-योगी के नाम पर वोट मिलेगा।
अपनी-अपनी जीत का दावा!
पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट वाराणसी में आखिरी फेज में यानी कल वोट डाले गए। प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरी बार यहां से अपनी दावेदारी पेश की है। इन चुनावों में इस सीट की चर्चा कॉमिक और मिमिक्री आर्टिस्ट श्याम रंगीला के पर्चा भरने और पर्चा खारिज होने की वजह से भी उठी थी। पर्चा से चर्चा उड़ी तो ये भी जानकारी आई कि शुरुआत में कुल ४१ प्रत्याशियों ने इस सीट पर अपना दावा ठोका था। इनमें से केवल सात उम्मीदवारों का नामांकन ही चुनाव आयोग की जांच प्रक्रिया से पास हो पाया। सात उम्मीदवार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलाकर हैं। मोदी के मुकाबले में कांग्रेस से अजय राय क्षेत्र के पुराने नेता हैं। उनकी मजबूत नेता की छवि है। पांच बार के विधायक हैं। चार बार कोलासला सीट से और एक बार पिंडरा से। बसपा से अथर जमाल लारी मैदान में हैं। वे वाराणसी के हाथ करघे के कारोबारी हैं। ६० के दशक से ही समाजवादी राजनीति से जुड़े हुए हैं। हालांकि, कोई चुनाव जीता नहीं। वहीं अपना दल (कमेरावादी) से गगन प्रकाश यादव मैदान में हैं। गगन प्रकाश यादव कई सालों से अपना दल में ही हैं। युग तुलसी पार्टी से कोलिसेट्टी शिव कुमार भी चुनावी मैदान में हैं। यहां सभी उम्मीदवार अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन अब चुनाव परिणाम बताएगा कि इन सात उम्मीदवारों में से जनता किसके सिर जीत का सेहरा बांधती है।