आस लगाए बैठे हैं सब
बैसाखी के पर्व का
बैसाखी आती है
फसलों में जान लाती है
पिंड में हरियाली छाती है
हवा भी तरंगें गुनगुनाती हैं
घर घर में खुशहाली लाती है
उत्कर्ष में ढोल मंजीरे बजाते हैं
भंगडा़ भी पाते हैं
समय आया खेतों को लहराने का
पक्षियों का लहरों में गाने का
जाटों के मुसकुराने का
किसानों को अपनी
मेहनत की कमाई पाने का
अन्न का अनुदान होता है
सब का समाधान होता है
प्रेम के दिए जलते हैं
दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं
मिल बांट कर सब खाते हैं।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा