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राजस्थान का रण: आखिर हार गए भाटी

गजेंद्र भंडारी

राजस्थान की बहुचर्चित बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी की हार चर्चा का विषय बनी हुई है। विधायक रविंद्र सिंह ने प्रदेश में निर्दलीय के तौर सबसे अधिक वोट प्राप्त किए, जबकि इस सीट पर उनका भाजपा प्रत्याशी से केंद्रीय मंत्री वैâलाश चौधरी, कांग्रेस से उम्मेदाराम बेनीवाल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था। हालांकि, इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल की जीत हुई है। बाड़मेर निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह की हार भी चर्चा में रही। उनको कुल ५,८६,५०० वोट मिले। रविंद्र ने हार के बाद कहा कि जनता का पैâसला मान्य है। जनता के बीच रहूंगा और उनके लिए काम करूंगा। मायूस होने की जरूरत नहीं है। यह अंतिम जीत या अंतिम हार नहीं है। खैर, जो भी हो अब भाटी को ५ साल तक इंतजार करना होगा। उससे पहले तो अब कुछ नहीं हो सकता। हां, विधायक पद जरूर बना रहेगा।

सचिन पायलट की मेहनत रंग लाई

राजस्थान लोकसभा चुनाव में एक दशक बाद कांग्रेस की वापसी का सेहरा पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के सिर बंधा। डोटासरा और पायलट के आक्रामक प्रचार की बदौलत कांग्रेस दोनों चरणों में प्रभावी नजर आई। शेखावाटी में सीपीएम से गठबंधन और भाजपा के बागी राहुल कस्वां को टिकट दिलाने में डोटासरा ने अहम भूमिका निभाई। इसी के दम पर शेखावटी से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। उधर पायलट ने अपने करीबी बृजेंद्र ओला, भजनलाल जाटव, मुरारीलाल मीणा, हरीश मीणा, संजना जाटव और कुलदीप इंदौरा को न केवल टिकट दिलाए, बल्कि उनकी जीत में भी अहम भूमिका निभाई। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस की जीत को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नतीजों का मुख्य सार यह है कि देश व राजस्थान की जनता ने बंटवारे, अहंकार व जमीनी मुद्दों को नजरअंदाज करने की राजनीति को ठुकराया है। यह जनादेश भाजपा के खिलाफ है और `इंडिया’ गठबंधन तथा कांग्रेस के पक्ष में है। राहुल, प्रियंका, खड़गे की मेहनत रंग लाई है और जनता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।

अपनों से ही हार गई बीजेपी

राजस्थान में लगातार दो बार क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा इस बार अपनों से हार गई। लोकसभा चुनाव में जीत के प्रति अति आत्मविश्वास भाजपा के लिए नुकसानदायक रहा। वेंâद्रीय नेतृत्व यह मान बैठा कि तीसरी बार राज्य में एकतरफा जीत होगी। यही आत्मविश्वास बड़े नेताओं की नाराजगी का कारण बन बैठा और राज्य के बड़े नेताओं ने चुनाव से कन्नी काट ली। यह चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नए वंâधों पर आकर टिक गया। अब भाजपा के कुछ दिग्गज विधायकों का खेल शुरू हुआ। बस एक ही मकसद अपने लोग जीतें, बाकी प्रत्याशियों के साथ भितरघात। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार धौलपुर करौली, भरतपुर, सीकर, झुंझुनं चूरू, नागौर, टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, बाड़मेर, बांसवाड़ा सीट पर अपने तमाम वजीरों को भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ ही सक्रिय कर दिया गया। यह भितरघात भाजपा के लिए पुराना प्रदर्शन दोहराने में बाधा बन गया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे चुनाव के दौरान अपने बेटे वैभव गहलोत को जिताने के प्रयास में जालोर से ज्यादा बाहर नहीं निकल सके। गहलोत ने राज्य में कुल ५३ चुनावी सभाएं कीं। इनमें से अकेले जालोर में करीब २२ सभाओं को संबोधित किया। ऐसे में सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा ने चुनाव की कमान संभाल ली। दोनों की जोड़ी ने पूरे चुनाव में कांग्रेस का माहौल बनाए रखा। कांग्रेस का अन्य दलों से गठबंधन के साथ एकजुटता से लड़ने का फॉर्मूला भी सफल रहा।

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