प्रभुनाथ शुक्ल भदोही
हमार गोवर्धन भईया खांटी फागुन आ बसंतवादी ह। ऊ एह सिद्धांत के आत्मसात कइले बाड़न। उनकर मानना बा कि जब गिरगिट के रंग बदल जाला त हमनी के काहे ना। एही से फागुन उनकर राग आ रंग में बसल बा। गोवर्धन भईया के कहनाम बा कि अगर जिए के बा त फागुन निहन जिए। ऊ अइसन गाय ना हई जवन खूंटा से बान्ह के चारा आ पानी खातिर मूंह मारत रहेले आ अपना मालिक पर निर्भर रहेले। उ कबो खादी के विचार ना मानत रहले, बल्कि खादी उनका विचार में शामिल हो गईल बा।
गोवर्धन भईया खादीजीवी हउवें। राजनीति में आवे से पहिले उ मैट्रिक फेल रहले। जब उ राजनीति में पहिला कदम उठवले त उनका के चुनाव कार्यालय के सफाई अवुरी आगंतुक के देखभाल के जिम्मेवारी दिहल गईल। ओह घरी उनकर पार्टी हाशिया पर रहे, लोग उनकर नाम सुनल भी पसंद ना करत रहे। बाकि जमाना अइसन बदल गइल कि ओनकर पार्टी बसंत बहार हो गइल। जेकरा के देख उहीं ऊ पार्टी में नहाई के बेताब बा। जईसे ऊ कवनो पार्टी न होकर पवित्र गंगोत्री हऊ।
गोवर्धन भईया खातिर चुनाव होली के मौसम ह। जब उ चुनाव प्रचार खाती निकलेले त एक क्विंटल अबीर अवुरी ग़ुलाल अपना संगे राखेले। उ कहले कि चुनाव होली के अंदाज में लड़े के चाही। उ अबीर लगावे के बाद ही अपन मतदाता के गले लगावेले। फागुन में सब रंग गुलाबी हो जाला। चुनावी बेला में हर कार्यक्रम में बिना बोलवले मेहमान बन के शामिल होत रहेलें। उनकर कहनाम बा कि खिड़की खुलल राखब त बसंत के हवा के दिशा के पता लगावल जा सकला। राजनीति में चतुर खिलाड़ी उहे होला जे तूफान के आवाज के एहसास कर सकेला आ सुरक्षित ठिकाना खोज सकेला।
गोवर्धन भईया के राजनीति में बड़ा नाम बा। हर पार्टी आ सरकार में इनकर प्रभाव बा। काहे कि जवना जाति से ऊ आवेला ऊ राजनीति के प्राण ह। ऊ राजनीति के बसंती चेहरा हउवें। सरकार बनावे भा गिरावे खातिर ऊ खुद रिमोट हाउवें। ऊ कबहू विपक्ष में ना रहल चाहेला। जेकरा के खूब गरिअवले चुनावी बेला में ओनही के सरकार में मंत्रीपद के खातिर बेताब रहलें। मंत्री बनल के बाद ही ओनके दिल के शांति मिलल।