मुख्यपृष्ठस्तंभभोजपुरिया व्यंग्य : हे कागदेव, लोगवा के सद्बुद्धि देईला!

भोजपुरिया व्यंग्य : हे कागदेव, लोगवा के सद्बुद्धि देईला!

प्रभुनाथ शुक्ल भदोही

हे कलियुग के पितृदेव यानी कागदेव जी हम राउर उत्कृष्टता के प्रणाम करत बानी। हम ओह करुणामय सृष्टि के भी बधाई देत बानी जवन रउरा के एक पखवाड़ा के बदे सबसे श्रेष्ठ बनाइल। लेकिन तोहार इज्जत देख के ई पुरखा लोग के ईर्ष्या हो जाला। कागदेव जी, खिसियाह मत। बाकि निश्चित रूप से धरती पर रहे वाला ओह लाखों जीवित माई-बाप के पीड़ा ऊ स्वर्ग में पुरखन तक पहुँचार्इं। कहल जाला कि तू अपना पुरखा लोग के मूर्त रूप हउअ, बाकि आजुकाल रउरो गायब हो गइल बाडे। लोग तोहरा के श्राद्ध बलि खातिर खोजत बा, लेकिन तू गायब बाडे।
अईसन गायब होत रहब त बाजारबाद बहुत खुश होई। ऊ राउर प्रतिकृति बाजार में छोड़ के आपन बाजार पितृपक्ष में चमका दीहें।
हे कागदेव जी! हो सकेला कि धरती के लोग कठोर कलियुग में अपना जिंदा महतारी-बाप के प्रार्थना ना करे, लेकिन पितृपक्ष के समय राउर निश्चित रूप से अपना पूर्वज के आत्मा शांति के प्रार्थना करेला। धरती पर भौतिक रूप से मौजूद अपना जीवित माई-बाप के उपेक्षा आ पीड़ा के खयाल ना राखेलें। हमरा ई बता के बेहद दुख होला कि कौआ के आत्मा में भी रउरा के जिंदा इंसान से अधिका सम्मान मिलेला। धरती पर हमनी के भौतिक माता-पिता जे परित्यक्त आ उपेक्षित बाड़े, ओह लोग के भी सम्मानजनक बनावल जाव। नवकी पीढ़ी के कुछ ज्ञान दीं।
हे कागदेव के रूप में अवतरित पूर्वज जी, रउरा एक पखवाड़ा हलवा, पूरी, सूखा फल, आ खोया से बनल मिठाई समेत तरह-तरह के व्यंजन खात बितावेनी। पूरा पखवाड़ा भोज-भात आ सम्मान के साथ बीत जाला। ब्राह्मण पर धन के बरसात करावेला। वैदिक मंत्र के बीच पिंडा दान लेत बाड़े, लेकिन धरती पर जिंदा माई-बाप जर्जर देह में लाश नियर धरती पर पड़ल बा। केहू वृद्धाश्रम में पड़ल बा त केहू नम कमरा में। पखवाड़ा में भी केहू घास ना देवेला। इनकर संख्या दू-चार ना, बल्कि लाखों में बा। वृद्धाश्रम में आपन जिनगी जीये। लइका-लइकी देश-विदेश में स्वतंत्र रूप से जप करेलें आ अपना माई-बाप के बोझ मानत बाड़े। परलोक छोड़ला के बाद तेरहवाँ दिन झूठा सम्मान में देसी घी के भोज होला। कागदेव! अइसन प्राणी के कब देब बुद्धि?

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