सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई की सड़कों पर वाहन चलानेवालों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगी है। अब ट्रैफिक पुलिस को कागजी दस्तावेज दिखाने की परेशानियों से मुक्ति मिल गई है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने आदेश जारी किया है कि अब वाहन चालकों के डिजिलॉकर और एम परिवहन ऐप पर मौजूदा डिजिटल दस्तावेजों को भी वैध माना जाएगा।
इस पैâसले के पीछे उन ड्राइवरों की शिकायतें हैं, जिन्हें वैध डिजिटल दिखाने के बावजूद चालान भुगतान करना पड़ रहा था। मंत्रालय के आदेश के बाद मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त (यातायत) अनिल कुंभारे ने भी ट्रैफिक पुलिस को लिखित निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देर्शो के मुताबिक, अब ड्राइवर अपने कागजी दस्तावेजों के बजाय डिजिलॉकर और एम परिवहन ऐप मौजूद डिजिटल दस्तावेज पेश कर सकते हैं।
डिजिलॉकर और एम परिवहन ऐप के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस, वाहन पंजीकरण प्रमाणपत्र, बीमा और प्रदूषण नियंतत्रण प्रमाणपत्र जैसे सभी दस्तावेज डिजिटल रूप में दिखाए जा सकते हैं। सूचना प्रौद्ययोगिकी अधिनियम की धारा ४ से ५ के तहत ये डिजिटल प्रतियां पूरी तरह से कानूनी मान्यता प्राप्त हैं। यह कदम न केवल ड्राइवरों की परेशानियों कम करेगा, बल्कि सड़क परिवहन में डिजिटलीकरण को भी बढ़ावा देगा। अब गाड़ी चलानेवालों को हर बार कागजी दस्तावेजों की फाइल ढोने की जरूरत नहीं होगी। बस डिजिलॉकर खोलिए, दस्तावेज दिखाइए और सफर पर निकल जाइए। हालांकि, केंद्र सरकार का यह कदम डिजिटल दस्तावेजों को वैध मान्यता देने की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ खामियां भी सामने आ रही है।
पुलिसकर्मियों की जागरूकता की कमी
ट्रैफिक पुलिस को डिजिटल दस्तावेजों के बारे में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला। कई पुलिसकर्मी अभी भी कागजी दस्तावेजों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे चालकों को परेशानी हो रही है।
इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या
डिजिलॉकर और एम परिवहन ऐप का इस्तेमाल इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भर करता है। मुंबई के कुछ क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की कमी के कारण यह सुविधा ठीक से काम नहीं कर रही है।
डिजिटल साक्षरता की कमी
कई ड्राइवरों के पास स्मार्टफोन नहीं है या वे डिजिटल दस्तावेजो का इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं हैं। इसका मतलब कि यह फैसला सिर्फ कुछ विशेष वर्गों के लिए ही राहत देनेवाला है। केंद सरकार का यह कदम डिजिटल दस्तावेजों को मान्यता देने के मामले में एक सकारात्मक पहल है। पर इसे लागू करने में कई चुनौतियां सामने आ रही है। जब तक ट्रैफिक पुलिस को ठीक से प्रशिक्षित नहीं किया जाता, तब तक यह नीतिपूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाएगी।