परिंदा

मेरे शहर में एक परिंदा है,
बस वही यहां पर जिंदा है।
इस जमीं पर लाशें भटकती हैं,
यहां आसमान बहुत शर्मिंदा है।
यहां काले रंग की बारिश होती
यही रंग यहां पर चुनिंदा है,
यहां रोशनी से डरते हैं लोग,
अंधेरा यहां का बाशिंदा है।
आस्था के नाम पाखंड होता,
यहां का मूल धर्म ईशनिंदा है।
बेईमान यहां बस राजा नहीं,
चोर यहां हर एक कारिंदा है।
है सत्य बस एक मिथ्या यहां
इस मज्मे में वो छरिंदा है।
अदम-ए-तशद्दुद पर तकरीर करता
वो शक्श जो खुद एक दरिंदा है।
–विशाल रामप्रवेश गौड़
नालासोपरा-पूर्व

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