कही कटा केक तो कही हुआ भव्य श्रृंगार
उमेश गुप्ता/वाराणसी
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काशीवासियों ने भैरवाष्टमी के रूप में मनाते हुए बाबा काल भैरव का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया। इस दौरान बाबा काल भैरव के भक्तों ने फल व मिठाई से निर्मित 1100 किलो का केक काटकर भक्तों में प्रसाद स्वरूप वितरित किया गया। भैरवाष्टमी के मौके पर शनिवार को काशी के भैरव मंदिरों में भक्तों की काफी भीड़ रही।
लाट भैरव काशी यात्रा मंडल के तत्वावधान में महाभैरवाष्टमी के पावन अवसर पर कज्जाकपुरा स्थित कपाल भैरव व लाट भैरव मंदिर में विधिवत पूजन अर्चन के साथ सैकड़ों भैरव भक्तों ने बाबा कपाल भैरव के सन्मुख संकल्प के साथ अष्ट भैरव प्रदक्षिणा यात्रा प्रारंभ किए। यात्रा में शामिल भैरव भक्त धार्मिक वेष धारण किए, नंगे पांव डमरू व शंखनाद के साथ हर हर महादेव व भैरव के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। यात्रा कज्जाकपुरा से प्रारंभ होकर महामृत्युन्जय महादेव मन्दिर प्रांगण में श्री असितांग भैरव, त्रिलोचन घाट स्थित श्री संहार भैरव, नखाश स्थित श्री भीषण भैरव, बटुक भैरव मंदिर मे स्थित उन्मत भैरव, कमच्छा मंदिर में क्रोधन भैरव, दुर्गाकुण्ड स्थित दुर्गा मंदिर में चण्ड भैरव, हनुमान घाट स्थित रूद्र भैरव के दर्शन के साथ अष्ट भैरव प्रदक्षिणा यात्रा सम्पन्न हुआ।
भैरवाष्टमी को लेकर मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। इस वर्ष यह तिथि 23 नवंबर शनिवार को मनाया गया है। काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिए बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने ही इनकी नियुक्ति यहां की थी।
ब्रह्माजी का कटा हुआ शीष काल भैरव के हाथ में चिपक गया था। ऐसे में काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाने के लिए शिव शंकर ने उन्हें प्रायश्चित करने के लिए कहा। शिव जी ने बताया कि वो त्रिलोक में भ्रमण करें और जब ब्रह्रमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाएगा उसी समय से उनके ऊपर से ब्रह्म हत्या का पाप हट जाएगा। फिर जब वो काशी पहुंचे तब उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर छूट गया। इसके बाद काल भैरव काशी में ही स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।