सामना संवाददाता / मुंबई
गांधी परिवार और कांग्रेस के गढ़ माने जानेवाले रायबरेली से चुनाव लड़ने से इंकार करने से वरुण गांधी को उनकी चचेरी बहन प्रियंका गांधी से लड़ाने की भाजपा की साजिश औंधे मुंह गिर गई। वरुण गांधी की पीलीभीत से टिकट कटने के बाद भाजपा उन्हें रायबरेली से लड़ाना चाहती थी, लेकिन जब इस बारे में वरुण गांधी से भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने पूछा तो उन्होंने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपनी बहन प्रियंका के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ूंगा। इससे साफ हो जाता है कि वरुण गांधी का व्यक्तित्व किस तरह का है। उन्होंने टिकट न मिलना स्वीकार कर लिया, लेकिन अपनी चचेरी बहन प्रियंका गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना कबूल नहीं किया।
बता दें कि साल २००४ में भाजपा जॉइन करने के बाद वरुण गांधी को साल २००९ के लोकसभा चुनाव में पहली बार पार्टी ने पीलीभीत से टिकट दिया और चुनाव जीतकर वो पहली बार लोकसभा पहुंचे। वे लगातार तीन बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें अपनी साजिश का शिकार बनाया है। भाजपा ने उन्हें उनकी चचेरी बहन प्रियंका गांधी के खिलाफ उतारने की चाल चली, लेकिन वरुण गांधी ने भाजपा की चाल को भांपते हुए किनारा कर लिया है।
दरअसल, वरुण गांधी के रास्ते भले ही आज अलग हैं, लेकिन बचपन में वो अपने चचेरे भाई राहुल गांधी और बहन प्रियंका गांधी के बेहद करीब थे। जानकारों के अनुसार, गांधी परिवार में वरुण सबसे छोटे थे और इस वजह से वे सबसे लाडले थे।
रायबरेली से रहा है खास नाता
बता दें कि उत्तर प्रदेश की इस सीट से नेहरू-गांधी का गहरा नाता रहा है। इस परिवार ने जिसे भी यहां से खड़ा किया, उसकी जीत निश्चित रही है। रायबरेली की जनता ने गांधी परिवार को सिर आंखों पर बिठाया है। २००४ में सोनिया गांधी इस कदर हावी रही थी कि गैर कांग्रेसी दलों को दूसरे नंबर के लिए संघर्ष करना पड़ा था। पिछले पांच चुनावों में सोनिया के सामने भाजपा को अपनी जमानत बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी थी। भाजपा रायबरेली से इस जुड़ाव को भी भुनाना चाहती थी, लेकिन उसे यहां भी मुंह की खानी पड़ी।