एम. एम. सिंह
मुझे इस तरह से मरने में सबसे ज्यादा खुशी होगी… कभी-कभी मौतें क्रांतियों को जन्म दे सकती हैं।
क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई उपरोक्त पंक्तियां बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हमारे हिंदुस्थान में लोकतंत्र के नाम पर चलाया जा रहा है। आखिर क्या वजह है कि जलवायु प्रदूषण, नागरिक अधिकार और चीन के अतिक्रमण के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक एक्टिविस्ट को आपकी मौत को क्रांति से जोड़ना पड़ रहा है?
दरअसल, सच्चाई यह है कि मोदी सरकार को उनकी साफगोई पसंद नहीं आ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि वह लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करेगी और इसी वादे के चलते सांसद बने जामयांग त्सेरिंग नामग्याल अब वांगचुक उन्हें अपने वादे की याद दिला रहे हैं। लद्दाख में चल रहे उनके क्लाइमेट प्रोटेस्ट को अधिकांश लद्दाखियों और पूरे भारत से बड़ी संख्या में समर्थन मिला है, यही वजह है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर आ गई है। हालात इस कदर बन गए हैं कि उसे लोकसभा चुनाव के लिए केंद्रशासित प्रदेश के अपने मौजूदा सांसद को हटाना पड़ा और लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के वर्तमान अध्यक्ष ताशी ग्यालसन को एक नए उम्मीदवार के तौर पर ख़ड़ा करने की घोषणा करनी पड़ी।
हालात ऐसे ही नहीं बने। भाजपा ने हमेशा की तरह उनकी मांग को नजरअंदाज करते हुए हल्के में लिया। मुद्दे बहुत सारे थे और उनकी आवाज बन रहे थे सोनम वांगचुक। इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत ४ मार्च को वांगचुक द्वारा २१ दिनों की भूख हड़ताल के साथ हुई थी।
सोनम वांगचुक को स्थानीय नेताओं और नागरिकों का साथ मिल रहा था यह एक तरह से मोदी सरकार के प्रति वे अपनी नाखुशी व्यक्त कर रहे थे। वांगचुक को मठों का और उनके भिक्षुकों का भी पूरा-पूरा सपोर्ट मिल रहा था।
भाजपा ने उन मठों को अपनी ओर खींचने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब वापस लौटते हैं वांगचुक की पोस्ट पर। २१ अप्रैल को वांगचुक ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि पिछले दिनों एक ‘बहुत ही अजीब और दिलचस्प घटना’ पेश आई।
वे बताते हैं कि उन्हें एक सादा, बिना निशान वाला लिफाफा मिला है, जिसके अंदर एक हाथ से लिखा गया पत्र है। पत्र में दावा किया गया है कि उनके इंस्टीट्यूट्स (वांगचुक स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख के संस्थापक-निदेशक हैं) के बैंक खाते का विवरण हाल ही में बैंकों से ‘एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग विभाग’ द्वारा लिया गया। पत्र को पढ़ते हुए वांगचुक कहते हैं, ‘केजरीवाल के मामले में भी ऐसा ही हुआ है।’
वांगचुक ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘मैं वास्तव में इस तरह की जांच का स्वागत करता हूं क्योंकि यही एकमात्र तरीका है, जिससे उन्हें और आप सभी को पता चलेगा कि मेरे संस्थान में क्या होता है।’
वांगचुक ने यह भी बताया कि एक अन्य ‘शुभचिंतक’ ने उन्हें उनके जान के संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी है। वांगचुक के मुताबिक, उसी दिन एक व्यक्ति, जिसने केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों में से एक में काम करने का दावा किया था और जिसने यह भी कहा था कि वह वांगचुक के काम का प्रशंसक है, उनके पास आया और कहा कि वांगचुक को उनकी सुरक्षा और जान का ‘बहुत अच्छी तरह से ख्याल रखना’ चाहिए। वांगचुक ने उस व्यक्ति का हवाला देते हुए कहा कि उसने उसे बताया था दुर्घटनाएं हो सकती हैं और वांगचुक की जान को खतरा हो सकता है।
२१ अप्रैल, जिस दिन वांगचुक ने गुमनाम पत्र के बारे में बात की, वह अनशन का ४६वां दिन था। वांगचुक ने २१ अप्रैल को अपने सोशल मीडिया वीडियो पोस्ट में कहा, ‘हम सभी भारत सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय को उन वादों को याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उन्होंने लद्दाख के इन नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और स्वदेशी लोगों की संस्कृतियों को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षित रखने के लिए किए थे।’
सोनम वांगचुक का यह कहना कि उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के तहत कार्रवाई की जा रही है और अपनी पोस्ट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जिक्र करना यह जाहिर करता है कि उनका इशारा केंद्र की किस तरह की चेतावनी पर है!
लब्बोलुआब यह कि वांगचुक की सीधी-साधी बात भाजपा को रास नहीं आ रही है और उनका हश्र उन्हें केजरीवाल की हश्र की ओर ले जाता नजर आ रहा है! वांगचुक का कहना ‘…कभी-कभी मौतें क्रांतियों को जन्म दे सकती हैं।’ स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा तो नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)