रामदिनेश यादव / मुंबई
बागियों के कारण भाजपा की टेंशन बढ़ गई है। भाजपा के बड़े नेता बागियों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं, पर बागी अब ब्लैकमेलिंग पर उतर आए हैं। वे पीछे हटने के लिए खर्च हुए धन के एवज में मोटी रकम की डिमांड कर रहे हैं। यह रकम करोड़ों रुपइ में बताई जाती है। इससे भाजपा के वरिष्ठ नेता हैरान हैं। इसके अलवा कुछ बागी सत्ता आने की सूरत में विभिन्न महामंडलों के अध्यक्ष पद की मांग भी कर रहे हैं।
बता दें कि इस बार विधानसभा चुनाव में महायुति को बागियों से डर लग रहा है। प्रदेश में भाजपा के खिलाफ उसके कार्यकर्ताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई है। नतीजतन, बड़ी संख्या में बागियों ने पर्चा भरा है। भाजपा एवं महायुति के प्रत्याशियों को हराना उनका एकमात्र लक्ष्य है, जिससे भाजपा की नींद उड़ गई है। कार्यकर्ताओं की बगावत को भारतीय जनता पार्टी ने गंभीरता से लिया है और बागियों को शांत करने के लिए भाजपा की टीम ने हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। बगावत को रोकने के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने राज्य के प्रमुख नेताओं को सख्त निर्देश दिए हैं। प्रदेश के प्रभारी सहित कुछ खास नेताओं को बागियों को मनाने की जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा ने आजमाई हुई तरकीब शुरू कर दी है और बागियों को मोल-भाव करके पटाने में जुट गई है। बता दें कि बोरीवली में सबसे बड़ी बगावत है, तो लातूर में एक पूर्व सांसद ने पार्टी छोड़ दी है और कांग्रेस में प्रवेश कर महाविकास आघाड़ी के समर्थन में प्रचार कर रहा है। अकेले विदर्भ में १२ सीटों पर बागियों ने पर्चा दाखिल किया है। ऐसे में देवेंद्र फडणवीस की हालत भी खराब हो गई है।
उल्लेखनीय है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ पार्टी के नेताओं ने नामांकन दाखिल किया है। कुछ स्थानों पर सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के खिलाफ भी भाजपा नेताओं ने नामांकन भरे हैं। विदर्भ की १२ सीटों पर हुई बगावत से भाजपा टेंशन में है। वहां के बागियों को शांत करने की जिम्मेदारी नागपुर के फडणवीस समर्थक एक नेता को सौंपी गई है। बता दें कि आर्वी में सुमित वानखेड़े के खिलाफ वर्तमान विधायक दादाराव केंचे ने बगावत की है। वानखेड़े उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पीए और करीबी हैं और यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई है इसलिए पार्टी यहां कोई खतरा मोल लेने के मूड में नहीं है। उधर, मध्य नागपुर में भाजपा के विधान परिषद सदस्य प्रवीण दटके चुनावी मैदान में हैं। यह हलबा बहुल क्षेत्र है और भाजपा ने १५ साल बाद यहां गैर-हलबा उम्मीदवार को मौका दिया। इसके विरोध में समाज ने नाराजगी जाहिर की और बीजेपी कार्यकर्ता दीपक देवघरे ने नामांकन दाखिल किया। अगर वे चुनाव में बने रहते हैं, तो मतों के विभाजन से भाजपा को नुकसान हो सकता है। चंद्रपुर में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के विरोध के बावजूद भाजपा ने निर्दलीय विधायक किशोर जोरगेवार को पार्टी में शामिल कर उन्हें टिकट दिया है। इस कदम से नाराजगी है। यह सीट बीजेपी ने २०१९ में खो दी थी।
फडणवीस के विदर्भ में बागियों का बवाल
लोकसभा चुनाव में पूर्वी विदर्भ में भाजपा को सिर्फ एक (नागपुर) सीट मिली थी और नागपुर में भी विजयी उम्मीदवार के मतों की संख्या पहले की तुलना में घट गई थी। इस क्षेत्र में ३२ विधानसभा क्षेत्र हैं, इसलिए भाजपा कोई जोखिम लेना नहीं चाहती है। इन सभी क्षेत्रों में नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी ने अपने नेताओं को काम पर लगा दिया है।