मुख्यपृष्ठसंपादकीयकश्मीर में खून-खराबा!... क्या करेगी चौकड़ी?

कश्मीर में खून-खराबा!… क्या करेगी चौकड़ी?

राष्ट्रपति भवन में ‘एनडीए’ सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान जम्मू-कश्मीर में भयानक आतंकी हमला हुआ। यह सच है कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है, लेकिन इस भयानक हमले से देश की कुंडली के ग्रह योग कुछ अच्छे नहीं लग रहे हैं। वैष्णो देवी के दर्शन करने जा रहे श्रद्धालुओं की बस पर आतंकियों ने फायरिंग की उसमें १० हिंदू श्रद्धालु मारे गए और ३३ घायल हो गए। पूर्व गृहमंत्री अमित शाह दावा करते रहते थे कि कश्मीर से धारा ३७० हटने के बाद वहां सब कुछ ठीक है। दरअसल, कश्मीर में हालात और नाजुक होते दिख रहे हैं। पहले कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाएं होती रहती थीं। लेकिन चिंता की बात यह है कि अनुच्छेद ३७० हटने के बाद जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमले होने लगे हैं। अमरनाथ यात्रा, वैष्णो देवी दर्शन के लिए हिंदू श्रद्धालु बड़ी संख्या में जाते हैं। उन भक्तों पर हमले शुरू हो गए हैं और प्रधानमंत्री मोदी और उनकी एनडीए सरकार जश्न मनाने में मशगूल है। कश्मीर में कल हुए हमले में बच्चे भी शामिल हैं। उनके शवों की तस्वीरें देखकर मन दुखी और सरकार की बेशर्मी पर शर्मिंदगी महसूस होती है। मोदी, शाह और अब उनकी जोड़ी में चंद्राबाबू नायडू और नीतिश कुमार हैं। इसलिए इस खून-खराबे की जिम्मेदारी ‘चौकड़ी’ पर ही होगी। धारा ३७० हटने के बाद भी कश्मीर का मुद्दा बरकरार है। २०१४ के चुनाव में मोदी-शाह ने कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का वादा किया था, लेकिन कश्मीरी पंडितों की अवहेलना खत्म नहीं हुई है। मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ बार-बार ग्रहण की है लेकिन कश्मीर के पंडितों को अभी तक कोई न्याय नहीं मिला है। पंडित समुदाय अभी भी शरणार्थी शिविरों में रह रहा है या जम्मू की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। यह मोदी-शाह की लफ्फाजी का उदाहरण है। मोदी ने इस चुनाव में भी हिंदुत्ववादी होने का गुब्बारा फुलाकर वोट मांगा, लेकिन उन्होंने कश्मीर में पंडितों की दुर्दशा का जिक्र नहीं किया। कश्मीर में आए दिन हिंदू मारे जा रहे हैं, सैनिक, पुलिस और सुरक्षा बलों की भी शहादत जारी है। कश्मीर को लेकर किए गए वादे पूरे नहीं हुए हैं और वहां के लोग अब भी बेचैन हैं। देश में मोदी की हार हुई है और उन्होंने इस हार का ठीकरा मुस्लिम समुदाय पर फोड़ा है। मोदी के लोग कहते हैं कि वह इसलिए जीते क्योंकि मुसलमानों और बांग्लादेशियों ने इंडिया गठबंधन को वोट दिया। अगर ऐसा है तो मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को विशेष तौर पर क्यों आमंत्रित किया गया? पिछले दस वर्षों में मोदी ने बांग्लादेशियों को वापस भेजने के लिए क्या कदम उठाए? सच तो यह है कि मोदी को हिंदू- मुस्लिम, ईसाई, सिख सभी ने हराया है। इसमें संविधान बचाने के लिए दलितों की शक्ति भी एकजुट थी। मोदी को केवल तफरीह और मौज में रुचि है। वादों के बुलबुले फोड़ने में उन्होंने दस साल बिता दिए। अन्यथा वह कश्मीर में शांति स्थापित करने में जल्दबाजी नहीं करते। धारा ३७० को हटाया गया, लेकिन क्या जम्मू-कश्मीर के भूमिपुत्रों का मसला हल हो गया? क्या उग्रवादी नेस्तनाबूद हो गए हैं? क्या कश्मीरी पंडित अपने असली घरों में लौट आए? क्या बेरोजगारों को नौकरी मिली? क्या कश्मीर पर टेढ़ी नजर से देखने वाले पाकिस्तानियों की आंखें निकाल ली गईं? इसके उलट, मोदी ने कश्मीर के नाम पर वोटों का बाजार रच दिया। इसमें पुलवामा जैसे जवानों के नरसंहार से दुनिया को मोदी के असली रूप का पता चला। पुलवामा ने पहले ही दिखा दिया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में मोदी कितने ढीले और अप्रभावी हैं। अब रविवार को कश्मीर में वैष्णो देवी के दर्शन करने जा रहे श्रद्धालुओं की बस पर आतंकवादियों द्वारा किया गया भीषण हमला भी मोदी की विफलता को दर्शाता है। वहीं सोमवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के सुरक्षा काफिले पर भी उग्रवादियों ने फायरिंग की। एक जवान घायल हो गया। अगर मोदी ने मणिपुर और कश्मीर में हिंसा और निर्दोषों की मौतों को गंभीरता से नहीं लिया, तो उन हत्याओं का ठीकरा चंद्राबाबू नायडू और नीतिश कुमार के सिर फूटेगा। क्योंकि इन दोनों की वजह से ही मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। कश्मीर में आतंकी हमले से पता चला है कि उनका पैâसला देश हित में नहीं है। यहां मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे और उधर कश्मीर में आतंकी ‘मोदी-३’ के लिए निर्दोष भक्तों के खून का ‘लाल’ कालीन बिछा रहे थे। वे यह दिखा रहे थे कि कश्मीर में जो खून-खराबा ‘मोदी-१’ और ‘मोदी-२’ में नहीं रुका वह ‘मोदी-३’ में भी जारी रहेगा। मोदी-शाह और चंद्राबाबू-नीतिशबाबू की चौकड़ी इस खून-खराबे की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

अन्य समाचार