साल २०११-२०२२ के बीच मौत का आंकड़ा ११३ प्रतिशत बढ़ा
भारत में हर दिन ४५ बच्चे और किशोरों की सड़क हादसों में मौत हो रही है। साल २०११ से २०२२ के बीच सड़क हादसों में मरने वाले १८ साल या उससे कम आयु के बच्चे और किशोरों की संख्या में ११३ फीसदी का इजाफा हुआ है। सभी तरह के सड़क हादसों में मरने वालों में १० फीसदी बच्चे और किशोरों की हिस्सेदारी है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदुस्थान की खूनी सड़कें हर रोज ४५ बच्चों की जानें ले रही हैं।
बता दें कि यह जानकारी बंगलुरु स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हांस) और यूनिसेफ की एक संयुक्त रिपोर्ट में सामने आई है, जिसके मुताबिक भारत में बच्चों की मौत का प्रमुख कारण सड़क यातायात दुर्घटनाएं हैं। इस रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने बाल यात्री को लेकर कारों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। इसके मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा बिक्री वाली २५ कारों का जब बाल यात्री सुरक्षा को लेकर विश्लेषण किया गया तो ५० फीसदी से ज्यादा को सुरक्षा रेटिंग तीन या उससे कम दी गई। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि २०११ और २०२२ के बीच, बच्चों और किशोरों के बीच अनुमानित १९८,२३६ सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं।
५० फीसदी बच्चों की मौत, ऑन दि स्पॉट
लगभग ५० फीसदी बच्चे और किशोरों की दुर्घटनास्थल पर मौत हुई। २१ फीसदी मामलों में सिर पर चोट लगने की वजह से मौत हुई जबकि २० फीसदी मामलों में निचले अंगों को नुकसान पहुंचा। १० राज्यों में ७,०२४ बाल एवं किशोरों की सड़क हादसों में मौत की राष्ट्रीय स्तर पर ४३ फीसदी हिस्सेदारी। इनमें हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं।