जब भी आप टीवी पर धार्मिक सीरियल देखते हैं और स्क्रीन पर जोर-जोर से अट्टहास करता कोई राक्षस नजर आए तो वह अभिनेता पंकज कुमार होंगे। लंबी कद-काठी का यह अभिनेता राक्षस के रोल के लिए निर्माताओं की पहली पसंद है। इसके अलावा यमराज के तो न जाने कितने सीरियल में वे भूमिकाएं कर चुके हैं। पेश है पंकज कुमार से
श्रीकिशोर शाही की हुई बातचीत के प्रमुख अंश –
होली का माहौल है। कभी बॉलीवुड में कोई ऐसी होली खेली है, जो यादगार रही हो?
हां, एक होली बड़ी मजेदार थी। वह रील के साथ ही रियल भी थी। करीब १९-२० साल पहले की बात है। हम कानपुर में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। उसमें एक होली का गीत था। शूटिंग के दौरान सेट पर दो दिनों तक जबरदस्त होली खेली गई। ऐसा धमाल हुआ कि असली होली भी फेल थी। बॉलीवुड की वह होली वाकई कभी नहीं भूली जा सकती।
बचपन में आपने होली में कोई शरारत की हो, जो याद आते ही आज भी बरबस चेहरे पर मुस्कान आ जाती हो…
एक बार तो रिक्शे से जा रहे एक अंग्रेज को ही रंग लगा दिया था। वह अंग्रेजी में चिल्ला रहा था, ‘व्हॉट इज दिस?’ एक बार मैंने अपने जीजा जी को नाली में गिरा दिया और कीचड़ में लिपटे वे चिल्लाते रहे और हम बुरा न मानो होली कहकर हुड़दंग मचाते रहे।
कीचड़ में गिराना ये कैसी होली…
उन दिनों ऐसा ही होता था। मैं जब छोटा था, तब होली के दिन तीन पार्ट में होली खेली जाती थी। सबसे पहले सुबह में कीचड़ और मिट्टी की होली खेली जाती थी। फिर गंगाजी में नहा-धोकर रंगों की होली खेली जाती थी। खा-पीकर कुछ आराम करते और शाम को अबीर-गुलाल से होली खेली जाती थी।
पहले की और अब की होली में क्या अंतर महसूस करते हैं?
अब होली में बिखराव आ गया है। तब हम सब मिलकर होली खेलते थे। अब होली सिमट गई है। एक घर में होली सिमट गई है। अब देखिए में यहां मुंबई में जिस सोसायटी (घर) में रहता हूं वहां आज से दो दशक पहले धूमधाम से होली खेली जाती थी। बच्चे अलग होली खेलते थे। महिलाएं अलग और हम लोगों की अलग मंडली सजती थी। धमाल होली खेली जाती थी। देखते-देखते सब बदल गया। अब तो कुछ बच्चे छिटपुट होली खेलते दिख जाते हैं। बाकी बड़े लोग घरों में ही कैद रहते हैं।
आपके दिल में कौन सा होली गीत बसा है?
एक ही तो है, ‘जोगी जी धीरे-धीरे…’। फिल्म नदिया के पार का यह गीत वाकई एकदम जीवंत लगता है। इस गीत को सुनते ही मेरे पैर थिरकने लगते हैं। काश, मुझे उस गाने का हिस्सा बनने का मौका मिला होता, पर उस वक्त मेरी उम्र कम थी और मैं कॉलेज में पढ़ रहा था… हा.. हा…हा…
बड़ी भयानक हंसी है आपकी। एकदम राक्षसी…
क्योंकि ब्रह्मांड में ऐसा कोई राक्षस नहीं बचा है, जिसकी भूमिका मैंने वैâमरे के सामने नहीं निभाई हो।
जैसे किन-किन राक्षस की…
सबसे पहले ‘जय हनुमान’ में मैंने महिरावण का रोल किया था। उसके बाद विष्णु पुराण में पातालकेतु बना था। ‘दर्शन दो भगवान’ सीरियल में तो खैर राक्षसों की भरमार थी और उसमें जितने भी राक्षस थे, उन सभी का रोल मैंने किया था। ‘बाल शिव’ में मैं महिषासुर बना था। स्वास्तिक प्रोडक्शन ने कई धार्मिक सीरियल्स बनाए। उनमें यमराज मैं ही बनता था। अभी तक इनके साथ सीरियल में मैं सात बार यमराज का रोल निभा चुका हूं। बीआर चोपड़ा ने भी रामायण बनाई थी। उसमें बाली की भूमिका थी और विष्णु पुराण में सुग्रीव बना था। संजय खान की ‘जय महाभारत’ में मैं कंस बन चुका हूं।
आपके यमराज बनने का अभी भी सिलसिला जारी है क्या?
बिल्कुल जारी है और चलता रहेगा। इस वक्त मेरे यमराज की भूमिका वाले तीन सीरियल ऑन एयर हैं। ‘शिवशक्ति’ में यमराज बना हूं। ‘भागवत रामायण’ और ‘वीर हनुमान’ में भी यमराज बना हूं। प्रेम सागर की ‘काग भुशुंडी रामायण’ में मैं कुंभकर्ण बना हूं।
अच्छा, ये बताइए कि इस राक्षस के रोल की शुरुआत कैसे हुई?
-मैं थिएटर का आदमी हूं। दो दशक तक थिएटर किया। पटना में ‘इप्टा’ से जुड़ा था। थिएटर में डायलॉग लाउड बोलना पड़ता है ताकि पीछे की सीट तक आवाज अच्छी तरह पहुंच जाए। तो जोर से बोलने की आदत थी। फिर मेरा कद काठी भी लंबी-चौड़ी है। जब मुंबई में शुरुआत हुई तो उन दिनों धार्मिक सीरियल काफी बन रहे थे। पहला ऑफर राक्षस का ही मिला तो मैंने उसे स्वीकार कर लिया। फिर तो वो राक्षस का किरदार मुझ पर ऐसा चिपका कि एक के बाद एक रोल ऑफर होते गए।
अगर मौका मिला तो आप किस नायिका के साथ आप होली खेलना चाहेंगे?
-राक्षस को घर में पिटवाएंगे क्या, जो ऐसा सवाल पूछ रहे हैं… हा… हा…हा…। देखिए सोनाली बेंद्रे काफी अच्छी अभिनेत्री हैं। उनकी मुस्कुराहट कुछ खास है। अगर कभी मौका मिला तो उन्हें रंग-गुलाल लगाकर उनके साथ होली के रंग में डूबना चाहूंगा।
आज तो सोशल मीडिया का जमाना है। यह त्योहारों पर भी हावी हो गया है। कै सा महसूस होता है, जीवन में सोशल मीडिया के आ जाने से?
लोगों का दायरा भले ही विस्तृत हो गया हो, पर लोग सिमटते जा रहे हैं। पहले लोग बड़ों के पैरों पर अबीर-गुलाल लगाकर उनका आशीर्वाद लेते थे और होली खेलते थे। अब वो सब खत्म होता जा रहा है। होली भी व्हॉट्सऐप पर सिमट गई है। आप कहने को तो पूरी दुनिया से जुड़े हो। यहीं बैठे अमेरिका-इंग्लैंड में अपने दोस्तों को हैप्पी कहते हुए होली की शुभकामनाएं देते हुए वर्चुअल होली खेल रहे हो। पर हो अकेले। यह सोशल मीडिया का साइड इफेक्ट है। विश तो हजारों को किया पर असल में खेले किसी के साथ नहा