मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : ५१ सदाबहार व्यंग्य रचनाएं `अमरकृति और बतासा'

पुस्तक समीक्षा : ५१ सदाबहार व्यंग्य रचनाएं `अमरकृति और बतासा’

राजेश विक्रांत
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार, कहानीकार, लघुकथाकार व अनुवादक भगवान वैद्य `प्रखर’ के ४ व्यंग्य-संग्रहों- बिना रीढ़ के लोग, माटी कहे कुम्हार से, चलती चाकी देख के तथा एक बीमार सौ अनार में प्रकाशित ३०० से अधिक रचनाओं में से व्यंग्य-संग्रह `अमरकृति और बतासा’ के माध्यम से प्रस्तुत ५१ रचनाएं मनुष्य में परंपरागत रूप से पाई जाने वाली विसंगतियों, विडंबनाओं एवं विकृतियों पर कटाक्ष हैं। इस कारण विश्वास है कि ये रचनाएं `सदाबहार’ बनी रहेंगी। लेखक के शब्दों में, `वह धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, रविवार, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान जैसे समाचार पत्र-पत्रिकाओं का जमाना था। व्यंग्य के लिए निर्धारित पृष्ठों पर हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, के.पी. सक्सेना, रवीन्द्रनाथ त्यागी, लतीफ घोंघी जैसे व्यंग्य-सम्राट छाए रहते थे। उनकी मौजूदगी में इन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाना कोई बड़ा पुरस्कार पाने के समान था। लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि इन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में गाहे-बगाहे मेरी रचनाएं स्थान पाती रहीं और मुझे ऐसे `पुरस्कार’ मिलते रहे।’
पुस्तक में अजब पड़ोसी, गजब पेड़, अथ ऑडिट पुराणम्, अफसोस, साला एस.पी. न हुआ, अमरकृति और बतासा, आदमी बनाम फुटबाल, उनसे अच्छा कौन है, उनकी महत्ता और नारियल का एक बाल, एक बीमार सौ अनार, कभी भी (मत) आइए मेरे घर, कलम, बंदूक और जली रस्सी की ऐंठन, किस खेत की मूली है क्यूबा की गाय, कुछ न देने वाले दानवीर, खामोश, प्रशासन चुस्त है, गणेशीलाल के प्रश्न और हिंदी, चाय का चक्रव्यूह और अभिमन्यु, चाहत एक अदद फोटो की, जहां जाना हो, चुपचाप निकल जाइए, डाक घर में गोंद, तुम कब जाओगे अधिकारी, तुम कब जाओगे किराएदार, तुम कोई पौधा न दो मित्र, प्लीज, नंदग्राम बनाम हांडी का एक चावल, निरंतर निर्माणाधीन सड़क, पता! किसी से भी पूछ लीजिए, पराई पीर से विमुख, प्रजातांत्रिक संतुलन, प्रभु पूजा में पड़ोस के पुष्प, फोटो-एलबम से सावधान, बड़े साहब का बारहमासी बसंत, बनता हुआ रेलमार्ग और नारियल का पेड़, बलिहारी कुकुर आपकी, वैसाखियां, भूमिपूजन से त्रस्त भूमि, मैचिंग-पीस, युवा-कवि का यौन परिवर्तन, रसोई घर में इमली की तलाश, रामबाण नुस्खा, राष्ट्र के विकास में सड़कों का बलिदान, वसंत ऋतु और सी.आर. की बयार, विवाह और नृत्य, वीआईपी और सूटकेस, वे जो कहीं भी (नहीं) हैं, शो केस में बंद कप-सॉसर, शो पीस की सिसकियां, श्रीमंत की शॉल अभिलाषा, समाजसेवक का तिलक, स़्क्रू-ड्राइवर की भटकती आत्माएं, स्टेटमैंट प्रधान देश हमारा, श्मशान भूमि में वक्तृत्व प्रतिभा, हर रिश्ता काम आ चुका है नौकरी में ठस हवा होना बुलडोजर का जैसी रचनाओं में लेखक का व्यंग्य कौशल छाया हुआ है। गणेशीलाल, अनूठेलाल, ठाकुर साहब, मेहता, दुबेजी, दानेश्वर जी, राय साहब, अधिकारी, किराएदार, बड़े साहब, सदाशिवराव, मोहनभाई, सुमेरु, नेताजी, सुरसतिया, बनवारी लाल, बांकेलाल, भैया जी आदि पात्रों के जरिए प्रखर जी ने रचनाओं में अद्भुत व्यंग्य की सृष्टि की है।
`अमरकृति और बतासा’ की पेज संख्या १८० है। इसका मूल्य २५० रुपए है। इसे डायमंड बुक्स नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। यह बार-बार पढ़ने योग्य कृति है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

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