राजेश विक्रांत
पांच कविता संग्रह- आईना, दास्तान-ए-जिंदगी, चलते रहना, उम्मीद का दीया व माटी का अभिनंदन के बाद साहित्यकार प्रदीप पांथ (प्रदीप कुमार तिवारी) का प्रथम कहानी संग्रह ‘अंतस्ताप’ भी धूम मचा रहा है। अमेठी जिले के मुसाफिरखाना के मूल निवासी प्रदीप पेशे से शिक्षक हैं, लेकिन साहित्य की दुनिया में उनका जबरदस्त आगाज हुआ है। नोशन प्रेस प्लेटफॉर्म से प्रकाशित १७४ पृष्ठों की मनस्ताप का मूल्य २४० रुपए हैं।
कथाकार प्रदीप ने अपनी बात में लिखा है कि ‘यह पुस्तक रिश्तों में मन की पीड़ा को प्रतिबिंबित करनेवाली दस कहानियों का संग्रह है। कहानियों के चरित्र भले ही काल्पनिक व भाषा साहित्यिक हो लेकिन विषयवस्तु समाज में घटित उन घटनाओं से जुड़ी है, जिनमें रिश्तों के चटकने और मानवीय मूल्यों के तार-तार होने से मन के किसी कोने में उठने वाली हूक ही हमारा अंतस्ताप बन जाती है। ऐसी घटनाएं हमारे मन को झकझोरते हुए यह सोचने को मजबूर करती हैं कि आज भी हमारे सम्पुट मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से कितने खाली हैं। स्वार्थसिद्धि की भावना सभी मूल्यों पर भारी होकर हमारे रिश्तों को दीमक की तरह चाट जा रही है।’ रिश्तों को बेहतर रखने से अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
‘अंतस्ताप’ कहानी संग्रह जिंदगी की जद्दोजहद से जूझते लोगों के मन की व्यथा कथा है। इसकी सभी कहानियां- रिश्तों का खून, बाबू जी, शब्बो, विश्वासघातिनी, कलुआ, कजरी, बहादुर, गाड़ी वाली अम्मा, सजा और जिजीविषा कहीं-न-कहीं रिश्तों की चटक से उठे अंतस्ताप को समेटे हुए हैं।
आर. रहमान की नजर में प्रदीप जीवन मूल्यों के चितेरे कथाकार हैं। पुष्कर सुल्तानपुरी के मुताबिक, प्रदीप की हर रचना मन तक पहुंचकर विमर्श का संदेश देती है। कर्मराज शर्मा ‘तुकांत’ के अनुसार, प्रदीप के कथा शिल्प विधान अनूठे हैं। विमल चंद्राकर कहते हैं कि प्रदीप की पद्य व गद्य दोनों विधाओं में मजबूत पकड़ है। अश्वनी शुक्ल अंतस्ताप को पढ़ना व चारधाम की यात्रा करना एक समान है। प्रदीप सारंग की राय में लेखक शब्दचित्र बनाने में माहिर है।
और ये बात प्रदीप की कहानियों से साबित होती है। रिश्तों का खून रिश्तों को भयावहता को उजागर करती है तो बाबू जी गृहस्थी के मकड़जाल में उलझे इंसान की मनोदशाओं का आईना है। शब्बो में मां की ममता व रिश्तों का समर्पण भाव है। विश्वासघातिनी के जरिए पता चलता है कि मां का दिल कितना सुंदर होता है। कलुआ कहानी मुसीबत के मारे परिवार के दर्द व संघर्ष तथा गंदे सरकारी तंत्र की पोल खोलती है। कजरी कहानी में रिश्तों की आंतरिक कड़वाहट है। बहादुर में पाठकों को दो भाइयों के प्रेम, वैधव्य में तिरस्कृत स्त्री, पुत्र मोह में फंसी मां की मन:स्थिति के साथ त्याग की झलक मिलेगी। गाड़ी वाली अम्मा एक बदकिस्मत मां की व्यथा कथा है। सजा कहानी में विभिन्न चरित्रों के कर्मों का लेखा-जोखा है। संग्रह की अंतिम कहानी जिजीविषा गरीबी में जीवनयापन करने वाले एक परिवार की आकांक्षाओं व संघर्ष की दास्तान है।
प्रदीप पांथ ने हरेक कहानी का ताना-बाना बड़ी मेहनत से बुना है। ये सब इसी समाज की कहानियां हैं। इनके पात्र आपके हमारे करीबी लगते हैं। यही मेरे प्रिय साहित्यकार अनुज कहानीकार प्रदीप पांथ की सफलता है। उनका रचना संसार और बढ़े, आसमान छुए, यही शुभकामनाएं हैं।