राजेश विक्रांत
लालबहादुर चौरसिया `लाल’ के काव्य संग्रह `मैं मधुमास ढूंढ़ने आया’ में किस तरह की कविताएं हैं, इसे जानने के लिए एक ही उदाहरण काफी है- किसी तपसी के पावन सत्य की ललकार कविता है, प्रणय के सारे रूपों की मधुर उद्गार कविता है। कवि तो सत्य, साधक, सर्जना का देवता है, धरा की अनुपम दिव्य सी उपहार कविता है।…
`मैं मधुमास ढूंढने आया’ में इस तरह की ७५ लोकोन्मुख कविताएं हैं। कवि के सौंदर्यबोध एवं भावबोध की बेजोड़ मिसाल यह है कि मशीनी युग की सारी विसंगतियों व विषमताओं को देखते व समझते हुए वो जीवन को मधुमास के रूप में खोज रहा है- शोर प्रबल है मतभेदों का सप्तसुरों की धड़कन में, मैं मधुमास ढू़ंढने आया पतझड़ के इस आंगन में।
`मैं मधुमास ढूंढ़ने आया’ के गीतों, छंदमुक्त कविताओं, मुक्तकों और दोहों से गुजरते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो कवि ने ऋतुराज में मधु ढूंढ़ा ही नहीं, बल्कि छककर उसका रसपान भी किया है इसलिए समूचे कविता संग्रह में मधुरस प्लावित है। कवि को `दीप’ प्रतीक बेहद पसंद है। ज्यादातर कविताओं में इसी के माध्यम से सामाजिक नैराश्य मिटाने का प्रयास किया गया है।
कवि की कई रचनाएं वायरल हुर्इं हैं। इसी क्रम में `सब्जी-सम्मेलन’ और `बेटी बचाओ’ शीर्षक कविता भी लोगों तक पहुंची। यह सोशल मीडिया का उज्ज्वल पक्ष ही कहा जाएगा कि कवि की इन कविताओं को आईसीएसई और सीबीएसई की पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने का प्रस्ताव मिला। इस प्रकार कबीरदास, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, हरिवंशराय बच्चन आदि ख्यातिलब्ध रचनाकारों के साथ इनका भी नाम जुड़ गया।
`मैं मधुमास ढूंढ़ने आया’ के कवि ग्रामीण क्षेत्र के रचनाकार हैं। विषय को वृहत्तर रूप से समग्रता में देखते हैं। हिंदी पर उनकी ये पंक्ति देखें- कब होगा इस देश में सुंदर नवल विहान। हिंदी से परिपूर्ण कब होगा हिंदुस्तान।
इस कविता संग्रह में शीर्षक कविता मैं मधुमास ढूंढ़ने आया के साथ उजालों से कह दो, वैâसे दीप जलाएं, पिता, बचपन का मेरा गांव, जननी, शिक्षक, दे सको तो प्यार देना, मैं बेटी हूं, आशाओं के दीप, सदा झुकाना उनको शीश, संकट के बादल, उसको वैâसे मीत लिखें, छले गए, अपनी हिंदी, चाल नहीं चलने देंगे, आओ चलो करें मतदान, मजदूर, मन की आंखें, राखी, एक रास्ता, सिर्फ एक गलती व चांद से भेंट कुछ ज्यादा प्रभावित करती हैं। अंधियारों को हंसते देखा, करती रुदन उजाली देखी। आज बदलते युग की हमने, ये वैâसी दीवाली देखी। दीपक एक बलाएं सौ-सौ, तूफानों का साया देखा, अट्टहास नफरत का भारी, प्यार बहुत घबराया देखा, अहंकार के मद में माती, लड़ते लोटा-थाली देखी। आज बदलते युग की हमने, ये वैâसी दीवाली देखी। पांव उसी के छाले होंगे, पथ में जिसने डाले होंगे।। पा जाएंगे वो ही मंजिल, सपने जिसने पाले होंगे।
`मैं मधुमास ढूंढ़ने आया’ कवि का दूसरा कविता संग्रह है। पाठकों के मानस-पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में यह पूर्णत: सक्षम है। मुझे विश्वास है कि प्रस्तुत कविता संग्रह काव्य-प्रेमियों का स्नेहभाजन अवश्य बनेगा। पुस्तक को मुंबई हिंदी अकादमी के राम कुमार ने प्रकाशित किया है। उनकी अकादमी व आर के पब्लिकेशन निरंतर प्रकाशन का अभिनव रिकॉर्ड बना रही है। १२२ पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य २५० रुपए है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)