राजेश विक्रांत
मुंबई के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक का कथा संग्रह `उलझे रेशम’ मानव मन की ढकी छुपी परतों की पोल खोलते हुए पाठकों को गहन संवेदनाओं की दुनिया में ले जाता है। इनकी कहानियों को पढ़ते हुए पाठकों को कोई फिल्म देखने जैसी अनुभूति होती है। सरस भाषा और रोचक शैली में लिखी ये कहानियां पाठकों को रोमांचित कर देती हैं तो इसका कारण ये है कि लेखक ने इनमें अपने अनुभवों की बात की है। इनमें कल्पना व सच्चाई का मिश्रण है।
संग्रह में कुल २० कहानियां हैं। मैं एक भटका जंगल हूं, एक जो दर्द धड़कता है कहीं दिल के परे, समझो तो बड़ी चीज है तहजीब बदन की, खुशबुएं फूल में वैâद नहीं होतीं, टूटे सतरंगी सपनों की बिखरी किरचें, वही है जुनूं, वही जुस्तजू, बरसात ने दिल तोड़ दिया, बहाव में बहना चाहिए, आंखों की चमक, सुरों की खनक, … हमने कांटों पे होंठों के निशाने देखे, मां-बहन, बीवी भी, फिर किसी शेर के मानी समझें: फिर किसी दर्द को पाले आंखें, आली रे मोहे लागे वृंदावन नीको, एक अठखेली रही आई वह, सदियों रहेगा ये फसाना, आंखों में खुलते इंद्रधनुष, तुम ही अनूक बिदेस जवैया, मेला उजड़ चुका था, एक और युद्ध से पहले तथा `उलझे रेशम’।
मैं एक भटका जंगल हूं में लेखक की साफगोई अद्भुत है। एक जो दर्द धड़कता है कहीं दिल के परे में एक चित्रकार लड़की की दास्तान है, जो लेखक के प्रति संवेदनशील है। समझो तो बड़ी चीज है तहजीब बदन की कहानी का मूल ये है कि उच्च मध्यम वर्ग व उच्च वर्ग हमेशा छापामार किस्म के सुख लेने में कोई बुराई नहीं समझता, सवाल सिर्फ सुविधा का होता है। फिल्मी दुनिया में अचानक मिली एक स्त्री मन की कोमल भावनाएं खुशबुएं फूल में वैâद नहीं होतीं कहानी में दर्ज हैं।
टूटे सतरंगी सपनों की बिखरी किरचें बताती हैं कि किसी कवि के करीब होना बहुत कठिन है। वही है जुनूं, वही जुस्तजू यानी बुद्धिजीवी होने में सुख भी है और दुख भी। बरसात ने दिल तोड़ दिया, बहाव में बहना चाहिए, आंखों की चमक तथा सुरों की खनक कहानियों का कथ्य अप्रतिम है।… हमने कांटों पे होंठों के निशाने देखे, मां-बहन, बीवी भी, फिर किसी शेर के मानी समझें: फिर किसी दर्द को पाले आंखें, आली रे मोहे लागे वृंदावन नीको, एक अठखेली रही आई वह, सदियों रहेगा ये फसाना, आंखों में खुलते इंद्रधनुष, तुम ही अनूक बिदेस जवैया, मेला उजड़ चुका था, एक और युद्ध से पहले, इन सभी कहानियों में लेखक का खूबसूरत मन, सरल व्यवहार व जमीन से जुड़ी बातें संवेदनाओं की चाशनी में डूबकर सामने आती हैं और पाठक गोपाल शर्मा की कहानी कला का दीवाना हो जाता है।
संग्रह की आखिरी व शीर्षक कहानी `उलझे रेशम’ सामान्य से विषय को लेकर शुरू की गई ऐसी कहानी है, जो अपने अंत तक पहुंचते- पहुंचते पाठकों को एक अलग दुनिया में पहुंचा देती हैं। वहां पर पाठकों को लेखक की जादुई शैली मोहित कर देती है।
`उलझे रेशम’ को आर के पब्लिकेशन, मुंबई के राम कुमार ने प्रकाशित किया है। इसका कवर बंशीलाल परमार ने बनाया है। ११६ पृष्ठ की इस पुस्तक के पेपरबैक संस्करण का मूल्य २२५ रुपए है। सच्चाई की छौंक लगी सारी कहानियां पठनीय हैं और इस बात की गवाह हैं कि गोपाल शर्मा गंभीर लेखन के साथ कथा-कहानी के भी बादशाह हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)