मनमोहन सिंह
भारत में एनईईटी को लागू हुए एक दशक से भी कम समय हुआ है, लेकिन इतने ही वक्त में इसने उतनी बदनामी बटोर ली है, जितनी प्रतिष्ठा भी नहीं कमाई है। हालात इस कदर हो गए हैं कि नवीनतम दौर में राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी, जो एनईईटी आयोजित करती है, को २०२४ के चिकित्सा के लिए पात्रता और प्रवेश परीक्षा के संचालन के बारे में लगाए गए आरोपों और आरोपों की जांच करने के लिए चार सदस्यीय समिति नियुक्त करने के लिए मजबूर होना पड़ गया है। देशभर के छह केंद्रों के लगभग १,५०० छात्रों ने शिकायत की कि उन्हें विभिन्न कारणों से परीक्षा पूरी करने के लिए पूरा समय नहीं दिया गया। वजहें हैं, गलत प्रश्नपत्र का वितरण, फटी ओएमआर शीट, तकनीकी गड़बड़ियां और ओएमआर शीट के वितरण में देरी। अदालत ने प्रभावित छात्रों को ग्रेस मार्क्स देने की अनुमति दी। परिणामों के प्रकाशन के बाद, यह नोट किया गया कि कुछ छात्रों ने ७२० में से ७१८/७१९ अंक प्राप्त किए, जो मौजूदा मूल्यांकन पैटर्न के साथ असंभव है। यह भी आरोप लगाया गया कि असामान्य रूप से बड़ी संख्या में छात्रों ने पूर्ण अंक प्राप्त किए। एनटीए ने बाद में स्पष्ट किया कि ये ऑड मार्क्स अदालत द्वारा अनिवार्य रूप से ग्रेस मार्क्स देने के परिणाम थे और सामान्य तौर पर यह एक आसान पेपर था इसलिए कई छात्रों ने पूर्ण अंक प्राप्त किए थे।
लेकिन मसला यहीं पर खत्म नहीं हो जाता! परीक्षा से पहले नीट यूजी प्रश्न पेपर लीक होने की खबरें थीं। कथित तौर पर एनटीए एनईईटी यूजी ऑफिशियल आंसर कीज (अधिकृत उत्तर कुंजी) में गलतियां पाई गईं, साथ ही यूजी प्रश्नपत्रों के लगातार मूल्यांकन के आरोप थे। अब जहां राजनीतिक दलों ने आरोपों की गहन, सक्षम तीसरे पक्ष से जांच की मांग की है वहीं छात्रों के समूहों ने भी दोबारा परीक्षा कराने की मांग की है।
बेशक इन आरोपों में तथ्य होने से इनकार नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके हर साल प्रबंधन में ईमानदारी के साथ-साथ छात्रों को बेहतर वातावरण और गुणवत्तायुक्त प्रश्नपत्र प्रदान करने की बजाय अभ्यर्थियों को क्या पहनने की अनुमति है जैसे बेतुके अनर्गल मामलों पर ज्यादा बहस की जाती है। नीट परीक्षा के दौरान ऐसी धोखाधड़ी व घोटाले भी उजागर हुए हैं, जहां उम्मीदवारों ने अपने स्थान पर परीक्षा लिखने के लिए प्रॉक्सी भेजे थे। संभवत: यह सालाना आयोजित होने वाली सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षाओं में से एक है, जिसमें लगभग २३ लाख छात्र परीक्षा देते हैं, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नीट का अतीत उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
साल-दर-साल परीक्षा के दौरान गंभीर उल्लंघनों की खबरें सुर्खियों में आती रहती हैं। एनटीए को राज्यों की सहायता से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रश्नपत्रों को समय से पहले जारी करने और प्रॉक्सी का उपयोग करने सहित तकनीकी गड़बड़ियां और धोखाधड़ी व घोटाले दोबारा न हों। यदि यह अधिक कठोरता बरतकर और लंबी, अधिक सावधानीपूर्वक तैयारी की दिनचर्या के साथ किया जा सकता है, तो ऐसा करने में कोई भी प्रयास नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उसे उन मांगों पर ध्यान देना चाहिए कि सभी एनईईटी प्रवेश केवल सिंगल विंडो काउंसलिंग के तहत आते हैं और निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस के सख्त विनियमन के अलावा, पीजी प्रवेश के लिए शून्य प्रतिशत बेंचमार्क का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
हालांकि, विशेषज्ञों का `तर्क’ है कि इतने बड़े पैमाने की परीक्षा से पूरी तरह त्रुटिमुक्त होना असंभव है। लेकिन यह तो कोई वजह नहीं हुई, जिसके चलते हजारों वे अभ्यर्थी जो साल-दर-साल ईमानदारी से मेहनत कर इस एग्जाम की तैयारी करते हैं और उन्हें प्रबंधन के इस तरह के कुप्रबंधन की सजा बेवजह भुगतनी पड़ती है। समझदारों की समझदारी के लिए इतना वक्त अगर नाकाफी है तो दंडवत प्रणाम!