मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : रो-रो सेवा

ब्रजभाषा व्यंग्य : रो-रो सेवा

नवीन सी. चतुर्वेदी
हर बार घुटरूमल जी हम सों प्रश्न करते आज हमनें विन पै सवाल दाग मारौ– घुटरूमल जी, आज कौ अखबार बाँचौ कि नाँय? भौत जोरदार खबर छपी है, भौत जल्दी रो-रो सेवा चालू हैवे वारी है। हम भूल गये हुते कि चक्कू खरबूजा पै गिरै कि खरबूजा चक्कू पै, हलाल खरबूजा कों ही होनों परै।
बोले- खबर गलत छपी है। रो-रो सेवा तौ न जानें कब सों चल रही है। या में नयौ का है? हम समझ नहीं पाये ये कौन सी रो-रो सेवा की बात कर रहे हैं। हम तौ विरार-पालघर के बीच सुरू हैवे वारी रो-रो सेवा की बात कर रहे हुते। जामें जमीन पै चलवे वारे वाहन आदि पानी के जहाज में चढ़ाय कें एक स्थान सों दूसरे स्थान पै लै जाये जामें। ये कहूँ गुजरात के घोघा और दाहेज वारी रो-रो सेवा की बात तौ नाँय कर रहे।
हम कछू समझ पाते वासों पहलें ही फिर बोले, रो-रो सेवा तौ न जानें कब सों चल रही है। पब्लिक मजबूर है कछू कर नाँय पाय रही। लाइलाज बीमारी बन गई है यै। खबर छपती तौ यै छपती कि रो-रो सेवा बंद होनेवाली है। हम अबू नाँय समझ पाये कि ये कहनों का चाह रहे हैं। वे आगें बोले- गुरूजी एक सड़क ऐसी नाँय नें, एक गली ऐसी नाँय नें जहाँ खुदाई न है रही होय। नकमाने कर कें रख दिये हैं या रोय-रोय सेवा नें। जहाँ देखौ वहाँ सड़क तोड़वे और बनायवे के समान बिखरे परे हैं। मसीनें खड़ी भई हैं। रस्ता रुके परे हैं। बरस’न है गये, पहलें खोदें, फिर भरें, फिर खोदें, फिर भरें, फिर खोदें, फिर भरें। जानें वैâसे पढ़े-लिखे लोग हैं जो प्लानिंग ही नाँय कर पाय रहे। कर्जा उठाय रहे हैं, घी खाय रहे हैं, ऊपर सों मगराय रहे हैं। वाहन रोय-रोय कें चलवे कों मजबूर हैं। आदमी रोय-रोय कें जीवे कों मजबूर हैं। कभू-कभू तौ ऐसौ लगै कि ये सड़क नाँय टूट रहीं, हमारी तुम्हारी कमरिया टूट रही हैं। ये सड़क नाँय बन रहीं हमारे तुमारे लिएं नई-नई बीमारी ईजाद है रही हैं। एक कष्ट होय तौ गिनामें। तुलसीदास जी के सब्द’न में कहें तौ सीता यानी पब्लिक कें अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला। खबर छपती तौ यै छपती कि रोय-रोय सेवा फाइनली अमुक दिन से बंद होने जा रही है। कोउ समझवे वारौ होतो तौ यै दिन ही क्यों आतो। चलौ जय राम जी की।

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