मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : कलजुग मै सरवन कुमार!

ब्रजभाषा व्यंग्य : कलजुग मै सरवन कुमार!

संतोष मधुसूदन चतुर्वेदी

गाम के छोटे से पुरखन घर में रह रही बुड्डी रूपमती कौं दूर सैर में रहबे बारे बेटा की पाती मिली। जामें, बेटा नें लिखोओ ‘मईया, मेरी तरक्की है गइऐ। कंपनी की तरफ सों मोकूं रहबे कूं भौत बड्डी कोठी मिलीए। अब तौ तुमकुं मेरे जौरें सैर मै आइकें रहनौ ही होइगौ। यहां पै तुमकूं काऊ तरियां की तकलीफ नाँय होबेगी।
परौस मै रहबे बारी राखी बोली, `अरी रहन दै सैर जाइबे कूं। सैर में बऊ-बेटन के जौरें रहकें भौत दुर्गत होबै। बौ गीता गई हती न, अब पछताय रही हतै, रोबे। नौकरन वारौ कबरा रहबे कूं दियौओ और नौकन्नी की तरह ही रखै। न बखत सूं रोटी, न चाय। कुत्तन सौं हू बुरी गत हतै।’
अगले ही दिना बेटा कार लेकें आय गयौ। बेटा की हठ के आगें रूपमती की एक नाँय चली। बानें सोच्यो की ‘जो होइगौ देखौ जाइगौ’ वौ अपनौ थोरौ सौ सामान लैकें कार मै बैठ गयी।
भौत देर के बाद कार एक बड्डी सी कोठी के सामनें जाइकें रुकी। `मईया मोकूं एक जरूरी काम हतै, मोय अभी जानौ परैगौ।’ ऐसौ कहकें बेटा, मईया कूं नौकरन के हवाले कर गयौ। बऊ पैलें ई काम पै जाय चुकी और बच्चा सकूल। रूपमती कोठीए देखन लगी। तीन कबरन मै डबल-बैड लगे हतै। एक कबरा भौत सजो हतो। एक कबरा बहू-बेटन को होइगौ, दूसरौ बच्चन कौ और तीसरौ मेहमानन कौं, बा नें ऐसौ सोचौ। पीछें नौकरन कौं बने कबरा हू बौ देख आयी। कबरा छोटे और ठीक हते। वौ सोच रई की गुजर है जाबैगी। बस बहू-बेटा और बच्चन सूं प्यार से बोल लें और दो टैम की रोटी मिल जाबै मोकूँ और काह चईएं। नौकर ने एक बार बाकौ सामान बरंडा के संग बारे कबरा में टिकाय दियौ। कबरा का ओ एकदम स्वर्ग हतो। रूपमती सोचबे लगी- काश! बाकौ हू कबू ऐसे कबरा में रहबे कौ मौकौ मिलतो। वो डरती-डरती बैड पै लोट गयी। भौत नरम गद्दा हते। बाकूँ एक लोककथा की नौकरानी की तरह नींद ही न आ जाबै और बहू आइकें बाकूँ डाँटे, सोचकें वौ उठ गयी।
संजा कौं जब बेटा घर आयौ तौ रूपमती बोली, `बेटा, मेरौ सामान मेरे कबरा मै रखवाय देतौ।’
बेटा हैरान, `मईया, तेरौ सामान तिहारे कबरा मै ही तौ रखौए नौकर नें।’ रूपमती आश्चर्यचकित रह गयी, `मेरौ कबरा! यै मेरौ कबरा!! डबल-बैड-सोफे-कुरसी वारौष्ठ!’
`हाँ मईया, जब हू दीदी आमें तौ तिहारे पास सोमें और तेरे पोता-पोती हू सोय जामिंगे तिहारे संग। तू टी.वी. देख, भजन सुन। कुछ और जो चइऐं तौ बेझिझक बताय दीजो।’ बासौं चिपककें बेटा ने ये बात कही तौ रूपमती की आँखन मै अंसुआ आय गये और बाकूँ खूब मन सौं आशीर्वाद दिये और बोली- आज मै धन्य है गयी, जो या कलजुग मै ऐसौ सरवन कुमार जैसौ बेटा जायौ।

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