मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : महामंडलीश्वर

ब्रजभाषा व्यंग्य : महामंडलीश्वर

 

नवीन सी. चतुर्वेदी

भौत दिना है गये घुटरूमल जी आये नाँय सो हमनें खैर-खबर लैवे कों फोन लगायौ तौ पतौ चलौ कि आप काऊ ठेकेदार के संग प्रयागराज महाकुंभ में गये भये हैं। हमनें पूछी और सुनाऔ का समाचार हैं? बोले गुरूजी का बतामें वैâसी-वैâसी लीला देखवे कों मिल रही हैं, पूछौ ही मत। खासकर कें युट्यूब वारे’न कौ अलग ही कुंभ चल रयौ है। कोउ छपकली’न के वीडियो बनाय रयौ है तौ कोउ मसक्कली’न की रील। कहूँ ठिठुरती ठंड में एकमात्र वस्त्रधारी संत लोग ऊनी कपड़’न सों लदे-पदे लोग’नें असीस दै रहे हैं तौ कहूँ वस्त्रधारी नंगा लोग नागा साध्वी’न के पीछें वैâमरा लिएं भाग रहे हैं। कोउ अघोरी अपने करतब दिखाय रयौ है तौ कोउ चीमटा लै कें युट्यूबर’न कों दौडाय रयौ है। कोउ कर्ज लै कें कुंभ नहायवे आयौ है तौ काहू नें दातुन बेच कें ही हजार’न कमाय लीने हैं। एक मृगनैनी कों तौ फिलिम में काम करवे कौ ऑफर तक मिल गयौ। जिनकों मिल गये वे मीठे और जिनकों नहीं मिले वे अंगूर’नें खट्टे बताय रहे हैं। समूचौ संसार जासों शिक्षा ग्रहण कर रयौ है वा महाकुंभ में जगें-जगें लोग भिक्षापात्र उठाएं घूम रहे हैं। गुरूजी सबते बड़ी विडंबना तौ यै दिखी कि ‘नदी किनारें हू पानी की वैâन बिक रई हैं’, जितने लोग वितनी लीला। कहाँ तक बखान करें।
फिर हमनें पूछी आप अपनी बताऔ कौन के संग गये हौ, का कर रहे हौ? बोले गुरूजी मैं तौ हिमालय सों पधारे महामंडलीश्वर महाराज के दर्शन की टिकट बेच रयौ हों। का करों पापी पेट कौ सवाल है सो इनके संग काम कर रयौ हों। ये भौत अच्छे आदमी हैं। टोटली धर्म निरपेक्ष। ये जो महाराज जी हैं नें ये ही मेरे बॉस हैं। ये क्रिसमस पै फादर बन जामें, ईद पै मौलवी और साधू-संत तौ ये साल में जब चाहें तब बनते रहें। आप तौ जानों ही हौ हम भारतवासी कितने मासूम होमें हैं। हमारी मासूमियत न जानें कितने’न के पेट पाल रही है।
अपने यहाँ धरम पै टिप्पणी करवे कों भौत बड़ौ अपराध मानें सो घुटरूमल की बात सुन कें हम केवल मुस्कुराय कें रह गये। परंतु हमनें यै जरूर पूछी कि घुटरूमल जी महामंडलेश्वर तौ सुने हैं यै महामंडलीश्वर वारी कौन सी लीला है? घुटरूमल जी बोले गुरूजी वौ का है नें हमारे सेठजी नें एप्लाई तौ करी हुती परंतु महामंडलेशर की डिग्री वारे दस करोड़ माँग रहे हुते।

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