नवीन सी. चतुर्वेदी
सबेरें-सबेरें घुटरूमल आये और झुँझराय कें बोले अपने त्यौहार आते ही जरुआ-फुकुआ सी पोस्ट क्यों आमन लगें? होरी मत खेलौ, पतंग मत उड़ाऔ, पटाखे मत फोरौ। इनके बिना त्यौहार, त्यौहार जैसे लगंगे का? एक तौ वैसें ही रुजगार की मजबूरी नें परिवार’न के खील-बिछट्टा कर रखे हुते, रही-सही कसर मोबाइल’न नें पूरी कर दीनी। पास-पास बैठे दो जने हु आपस में बात न कर कें मोबाइल’न में घुसे रहें!
दरअसल, दिवारी आते ही ‘पटाखे मत चलाओ’ टाइप जो मैसेज आमें, घुटरूमल विनसों अपसेट हुते। बात समझते ही सबसों पहलें हमनें पूछी यै बताऔ कि मैसेज भेज कौन रहे हैं? बोले नाम-फोटू कछू अजीब से हैं। न हिंदू लगें न ईसाई न मुसलमान। फिर पूछी का ये वे ही हैं जिननें मुहर्रम-बकरीद पै हु ज्ञान बाँटो? बोले हाँ, हैं तौ वे ही, एक और बात नोट करी है कि ये डॉट-डॉट-डॉट कभू हैलोवीन, क्रिसमस या न्यू-ईयर पै ज्ञान नाँय बाँटें, बल्कि खुद्द पटाखे चलाते भए अपने फोटू-वीडियो डारें।
हमनें विनें समझायौ टेंसन मत लेउ। यै भारत है, यहाँ स्वदेसी-काया’न में बिदेसी-आत्मा घुसती रही हैं। मगर आप निश्चिंत रहौ हम भारतीय-मनीषा के लोग सूप की तरें सार-सार गह कें थोथौ उड़ायवे में एक्सपर्ट हैं। हम हमेसा अच्छी-प्रथा अपनात रहे हैं। देखौ भगवान राम की मैया तीन हुतीं परंतु विननें एक पत्नी व्रत कौ पालन कियौ। कृष्ण नें जीव-मात्र सों प्रेम करिवौ सिखायौ। बुद्ध नें युद्ध में शांति की डगर दिखाई। राजा राममोहन राय नें सती-प्रथा बंद करवाई तौ सावित्रीबाई फुले नें नारी-शिक्षा कौ अलख जगायौ। स्वयं जगद््गुरु शंकराचार्य जी नें अपनी मैया के दाह-संस्कार के लिएं संघर्ष कियौ। जैसें ही कोउ प्रथा, कुप्रथा की तरफ बढ़न लगै तौ भारतीय-मनीषा आत्मचिंतन के माध्यम सों अपने हित’न की रक्षा स्वयं करन लगै।
पटाखे’न सों प्रदूषण होवै, सत्य है, परंतु विन उपकरण’न कौ का जिनकौ इस्तेमाल कर कें हम स्वयं न केवल बिमारि’न कों न्यौत कें जिमाय रहे हैं, बल्कि ऊपर सों डॉक्टरी-खरचा के रूप में दान-दक्षिणा हु दै रहे हैं। या पै चरचा होवै हु है तौ ऐसें जैसें पोरुअ’न ते थन छी रहे होंय। बड़ौ ही माइक्रो-हिंट दै रयौ हों। यदि समय मिलै तौ गूगल सों मोनोक्साइड-गैस के बारे में पूछियो कि याकौ उत्सर्जन काय-काय सों होवै? कितनों-कितनों होवै? का याकौ उत्सर्जन प्रतिदिन, प्रतिपल घर-घर, डगर-डगर पै है रयौ है? ये प्रश्न आपकों और हु अनेक’न विचार’न तक लै जामंगे परंतु भैया ज्ञान बाँटवे की बजाय हम तौ यही निवेदन करंगे कि
दिग्भ्रमित-जग से उलझकर क्या मिला है? क्या मिलेगा?
आत्म-चिंतन कीजिए श्रीमान! श्रेयस्कर यही है