मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : म्हों मीठौ है जावैगौ

ब्रजभाषा व्यंग्य : म्हों मीठौ है जावैगौ

नवीन सी. चतुर्वेदी

घुटरूमल जी नें भौत कोसिस करी कि हम विनें हिंदी दिवस पै कछ लिख कें दै देमें परंतु हमारौ मूड बन नहीं पायौ। दरअसल, गाम के कुआ में अफीम घुर गयी होय ऐसे में जिननें वौ पानी पी लियौ वे सियाने और जिननें नाँय पियौ वे बावरे। हमनें अफीम घुरौ पानी नाँय पियौ, आप हमें बावरौ कह सकौ।
आज हम हँसायवे के मूड में नाँय नें। वैसें हु ठठ्ठा मार कें हँसवे कों व्यंग्य थोरें ही कहें। असल में तौ आदमी कों स्तब्ध कर कें सोचवे कों विवश कर देय, वासों व्यंग्य कह्यौ जावै। परंतु का करें, गाम के कुआ में अफीम जो घुर चुकी है।
‘हिंदी’ कहवे कों यै केवल एक शब्द है, मगर महँगे सों महँगे रतन हु याके आगें पानी भरें। याहि पायवे कों सासन, प्रसासन और जनता मिल कें हर साल करोड़’न पानी की तरें बहाय रहे हैं, परंतु मजाल है यै काहु के हाथ लग रही होय!
याके कछु और हू नाम हैं। जैसें कि जब हम कहें कि ‘ऑफिस की टेबल पर फाइल में जो डॉक्युमेंट्स हैं उन पर डायरेक्टर साब के सिग्नेचर चाहिए’ तौ याते हिंगलिश कह्यौ जावै। हालाँकि, फाइल कों फाइल कह्यौ जाय सवैâ, परंतु अन्य शब्द’न के लिएं तौ देसी विकल्प हैं नें? मगर वौ ही बात, गाम के कुआ में अफीम जो घुर चुकी है।
दुसरौ उदाहरण, एक शेर सुनों- ‘यार किस बात पर खफा हो तुम, क्या कोई मुस्कुरा नहीं सकता?’ बोलवे सुनवे में तौ यै उर्दू कौ शेर लगै, परंतु देवनागरी लिपि में लिखते ही यै उर्दू कौ शेर हिंदी कौ मान लियौ जावै। कोउ-कोउ या कों हिंदवी या हिंदुस्तानी हु कहें। कहवे में विचित्र लगै, परंतु हिंदी वौ भाषा है जो देवनागरी लिपि सों पहिचानी जावै। अफीम घुरौ पानी पी चुके सियाने’न कों भला कौन समझाय सकै?
इतनों ही नाँय, जिन भाषा’न नें मिल कें हिंदी कौ सृजन कियौ हुतो वे आज या तौ खोपचे में हैं या लॉफ्टर या अश्लीलता कौ पर्याय बन चुकी हैं या टिपिकल टाइप बन कें रह गयी हैं। मजा तौ देखौ हिंदी कों लौह-पथ-गामिनी जैसे विशेषण’न सों सम्मानित कियौ जावै, जबकि अंग्रेजी कों पढ़े-लिखे’न की भासा और उर्दू कों मुहब्बत की जबान कह्यौ जावै। या हालत के लिएं हम स्वयं उत्तरदायी हैं। चलनी में दूध छान कें करम’न कों दोस दै रए हैं। अरे भले मानुसौ मिठास के लिएं मिठाई खायवे की जगें कभू अपनी भासा बोल कें तौ देखौ, म्हों मीठौ है जावैगौ।

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