राजेश विक्रांत
देश का वातावरण चुनावी गंध से बजबजाने लगा है। अधिकृत, दल बदलू या विद्रोही उम्मीदवार सभी अपनी-अपनी गोटियां फिट कर रहे हैं, वे रेडी मिसाइल की महा संसद में घुसने के लिए बेताब हैं। बाहुबली, करोड़पति, दागी हर तरह के उम्मीदवार मैदान में हैं। किसी ने मर्डर किया है तो कोई अंग-भंग का आरोपी है, किसी के खाते में बम विस्फोट तो किसी के खाते में दंगा फसाद का सत्कर्म दर्ज है। बलात्कारी, ठग, जालसाज व भ्रष्टाचारी भी ताल ठोक चुके हैं।
भाई-भतीजा, दामाद, निजी सचिव, चमचा, चमची आदि अनेक तरह के वादों के सौजन्य से टिकट बंट गए हैं या कट गए हैं। उम्मीदवारों का एक्सपोर्ट व इम्पोर्ट हो रहा है। नाराज को मना रहे हैं, जिताऊ को ललचा रहे हैं। नारों, वादों, आश्वासनों एवं घोषणाओं का शॉर्ट टर्म दृश्य जनता को दिखाया जा रहा है। जुमलों की पैâक्ट्री प्रोडक्शन में लगी है। २०० की भी औकात नहीं रखने वाले ४०० पार की अफवाह पैâला रहे हैं। तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का चूरन मतदाताओं को चटाया जा रहा है। दोनों हाथों को फोल्ड कर अति विनम्रता पूर्वक (आदमी विनम्र होता ही तब है, जब वह सड़कों पर होता है) सड़कों, गली-कूचों की खाक छानी जा रही है। ईडी, आयकर, सीबीआई एक्टिव मोड में हैं। ईवीएम हैकर सक्रिय हैं।
बहरहाल, इस चुनाव में मैं उम्मीदवार तो नहीं हूं पर उम्मीदवार होने की इच्छा रखता हूं। इसका प्रमाण है, मेरा मौलिक चुनाव घोषणापत्र। यह चुनावी घोषणापत्र मेरी जीत का गारंटी पत्र है। इसमें समाज के सभी वर्गों के साथ उस वर्ग का ख्याल भी रखा गया है, जो किसी भी `ऐरे गैरे, नत्थू खैरे’ को सीधे संसद पहुंचा सकता है। जो पार्टी इस घोषणापत्र को अपनाएगी, मैं उसी में चला जाऊंगा। पेश है मेरा चुनावी घोषणा पत्र-
हम जीत गए तो युवाओं को रचनात्मक कार्यों की खुली छूट दे देंगे। उन्हें अपने-अपने संस्थानों के दफ्तरों को जला देने की खुली छूट रहेगी। रेल की पटरी उखाड़ना, सरकारी बस जलाना, पोस्ट आफिस-बैंक लूटना आदि उनके मूल अधिकार होंगे। इन सबके पुर्ननिर्माण में करोड़ों श्रम दिवसों की दरकार होती है, लिहाजा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और लोगों को काम मिलेगा।
महंगाई की कुमारी सुरसा जी अपना भयंकर जबड़ा दिन-प्रतिदिन चौड़ा कर रही है, इससे दुखी जनता को परमानेंट सुखी होने के इंजेक्शन नि:शुल्क लगाए जाएंगे। हम समस्या को जड़ से मिटाने में यकीन रखते हैं। इसलिए समस्या, दुख, तकलीफ, प्रॉब्लम आदि शब्दों को शब्द कोश से निकलवा कर फेंक देंगे, `न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’।
देश की जनता को यह पूरा अधिकार दिया जाएगा कि वह जिस स्थिति में है, उसी स्थिति में बनी रहे। इसके अलावा बाढ़ में झोपड़े सहित बह जाना, ठंड का भरपूर लाभ लेते हुए इस असार संसार से मुक्ति प्राप्त करना, प्लेग में महाप्रयाण करना, दंगा-फसाद, बस-रेल दुर्घटना, शहीद हो जाना अब तक जनता के मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं हैं। इसे हम शामिल कराएंगे।
भ्रष्टाचार नामक सत्कर्म को वैध करार कर देंगे। आयकर की तरह सभी के भ्रष्टाचार की सीमा तय कर दी जाएगी। मैंने एक खास वॉशिंग मशीन भी डिजाइन की है, जिसमें सभी भ्रष्टाचारियों के पाप धुल जाएंगे। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। इस पर अंकुश लगाने के लिए खून-खराबा, लूटपाट, चोरी-डवैâती, बलात्कार, घोटाला इत्यादि की खुली छूट हो और हर हाथ को काम मिल सके।
कामिनी, विलासिनी, लक्ष्मी, मालिनी उर्फ महिला, औरत या नारी महोदया को भोजन बनाने, कपड़े धोने, घर की साफ-सफाई करने, बरतन मांजने, बच्चे पैदा कर उनका पालन पोषण करने, पति सेवा करने के बदले भद्दी गालियां सुनने व मार खाने का पूर्ण अधिकार रहेगा। इस क्षेत्र में उन्हें पूरे १०० फीसदी आरक्षण दिया दिया जाएगा। हम ३३ फीसदी की बजाए महिलाओं को १०० फीसदी आरक्षण देने के हिमायती हैं।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)