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गड़े मुर्दे : थूकना मत, नहीं तो देवकर आ जाएगा! … एक सफाई प्रेमी पुलिसवाले की दहशत की कहानी

जीतेंद्र दीक्षित
विदेश से भारत घूमने आए लोगों के बीच हमारे देश की अच्छी छवि उस वक्त नहीं बनती जब वे देखते हैं कि राह चलते लोग कहीं पर भी थूक देते हैं। पान खाकर या गुटखा खाकर उसकी पीक से सार्वजनिक ठिकानों, बसों और ट्रेनों को लाल कर देते हैं। ऐसे लोगों से निपटने के लिए कई साल पहले मुंबई महानगरपालिका ने क्लीनअप मार्शल नियुक्त किए हैं जो सार्वजनिक ठिकानों पर गंदगी पैâलाने वालों से जुर्माना वसूलते हैं। ऐसे क्लीनअप मार्शल का ज्यादा असर नहीं हुआ। आज भी लोग बेधड़क होकर जहां मर्जी होती है वहां थूक देते हैं। लेकिन साल १९९८ से लेकर २००४ तक मुंबई शहर में एक ऐसा भी इलाका था, जहां सड़क पर किसी की थूकने की हिम्मत नहीं थी। सड़के बिल्कुल साफ-सुथरी होती थी। यह क्लीनअप मार्शल या फिर किसी सफाई अभियान का नतीजा नहीं था बल्कि एक साधारण पुलिसकर्मी की पहल ने इसे मुमकिन किया था। गंदगी पैâलाने वालों को यह पुलिसकर्मी फाइन नहीं मारता था बल्कि कॉलर पकड़ कर उन्हीं से उनका ‘किया कराया’ साफ करवाता था। एक बार इस पुलिसकर्मी के चंगुल में फंसा शख्स फिर कभी सड़क पर थूकने की जुर्रत नहीं करता।
सातारा के रहनेवाले शिवाजी देवकर की साल १९७५ में बतौर कांस्टेबल मुंबई पुलिस में भर्ती हुई थी। १९९८ में उनकी पोस्टिंग बांद्रा के खेरवाड़ी पुलिस थाने में की गई। यहां उनको ‘मिल स्पेशल’ टीम में रखा गया। ‘मिल स्पेशल’ की टीम पुलिस थाने की हद में खुफिया जानकारी जुटाने का काम करती थी।
एक बार देवकर कलानगर के सामने स्थित म्हाडा मुख्यालय की इमारत में गए। वहां उन्होंने देखा कि इमारत का कोना-कोना लाल रंग से रंगा हुआ था। लोग बेधड़क होकर कहीं भी पान या गुटखा खाकर थूक रहे थे। स्वच्छता प्रेमी देवकर को एक अहम सरकारी इमारत का यह हाल देखकर बहुत गुस्सा आया। उसी वक्त उन्होंने प्रण कर लिया कि अगर वह किसी को गंदगी पैâलाते देखेंगे तो उसी से उस गंदगी को साफ करवाएंगे। देवकर ने इसे अपनी जिंदगी का मिशन बना लिया।
उस दिन के बाद से अगर देवकर किसी को भी सड़क पर या किसी सार्वजनिक स्थान पर थूकते हुए देखते तो तुरंत उसको कहते कि वह उसे साफ करे। अगर वह शख्स ना-नुकुर करता तो देवकर सीधे उसका कॉलर पकड़ लेते और तभी छोड़ते जब वह शख्स अपनी रुमाल से अपने थूक को पोछ देता या पानी डालकर उसको साफ कर देता। इलाके में घूमते हुए रोज १० से १५ लोग ऐसे मिल जाते जिनसे वे गंदगी साफ करवाते। देवकर की गिरफ्त में अक्सर ऑटो रिक्शा ड्राइवर और टैक्सी चलाने वाले लोग आते।
बहुत जल्द ही इलाके में देवकर की दहशत पैâल गई। कोई भी सड़क पर थूकने की जुर्रत नहीं करता था। देवकर के दबंग अंदाज ने कईयों की गलत आदत सुधार दी थी। कई ऑटोरिक्शा वालों ने तो डर के मारे पान और गुटखा खाना ही छोड़ दिया। कई बार थूक साफ करने के लिए कहने पर लोग आक्रामक भी हो जाते तब देवकर उन्हें अपना पुलिसिया रूप दिखाते। देवकर का मानना था कि पुलिस की ताकत का इस्तेमाल समाज को अपराधियों से साफ करने के साथ-साथ सड़क की गंदगी साफ करने के लिए भी किया जा सकता है। देवकर के काम की खबर तत्कालीन महापौर महादेव देवले तक भी पहुंची। एक तरह से देवकर मुंबई पुलिस में रहते हुए महानगरपालिका का ही काम कर रहे थे। उन्होंने देवकर को बुलाकर उनकी प्रशंसा की।
ऐसा नहीं है कि देवकर ने सिर्फ गंदगी फैलाने वालों को ही पकड़ा हो। बतौर पुलिसकर्मी उन्होंने कई अपराधों का पर्दाफाश करने में भी भूमिका अदा की। उन्हें पुलिस विभाग की तरफ से १०० से ज्यादा पुरस्कार और पुलिस महानिदेशक का प्रतीक चिन्ह भी मिला। २०१२ में पुलिस उप निरीक्षक होकर देवकर सेवानिवृत हुए। अब वे अपने गृह जिले सातारा में खेती करते हैं।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

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