मुख्यपृष्ठस्तंभगड़े मुर्दे : ‘बहादुर’ की गवाही से सलेम को मिली थी सलाखें!

गड़े मुर्दे : ‘बहादुर’ की गवाही से सलेम को मिली थी सलाखें!

जीतेंद्र दीक्षित

९० के दशक में जिन अंडरवर्ल्ड गिरोहों ने मुंबई में अपने आतंक का साम्राज्य कायम किया था उनमें से एक था अबू सलेम का गिरोह। सलेम १९९७ तक दाऊद इब्राहिम के गिरोह के लिये काम करता था और उत्तर प्रदेश से गिरोह के लिए शूटरों का इंतजाम करता था। गुलशन कुमार की हत्या के बाद सलेम डी कंपनी से अलग होकर स्वतंत्र गिरोह चलाने लगा। ये कहानी उस वक्त की है, जब सलेम दाऊद के गिरोह के लिए काम करता था और अलग नहीं हुआ था।
२९ मार्च १९९५ को अबू सलेम के शूटरों ने मुंबई की जूहू गली में प्रदीप जैन नाम के एक बिल्डर की उसके दफ्तर में घुसकर हत्या कर दी। सलेम ने ये हत्या अपने आका अनीस इब्राहिम के कहने पर करवाई थी। अनीस ने जैन से वसूली के लिए एक बड़ी रकम मांगी थी, जिसे देने में जैन ने अपनी असमर्थता जताई। इस पर अनीस ने जैन को अपनी संपत्ति उसके किसी आदमी के नाम करने को कहा। बातचीत में जैन भड़क गए और उन्होंने अनीस को गाली दे दी। इसके बाद अनीस अपना आपा खो बैठा और उसने सलेम को निर्देश दिया कि प्रदीप जैन को खत्म कर दिया जाए।
अनीस का निर्देश मिलने के बाद अबू सलेम ने पेजर के जरिए मुंबई में अपने गुर्गे मोहम्मद हसन मेंहदी से संपर्क किया और कहा कि वो शूटर सलीम हड्डी से उसकी बात करवाए। सलेम ने उसे २५ हजार रुपए की सुपारी दी और प्रदीप जैन को खत्म करने के लिए कहा। शौकत कडिया नाम के एक, दूसरे गुर्गे ने प्रदीप जैन के आने-जाने और दफ्तर में बैठने के वक्त की जानकारी सलीम हड्डी को दी। ७ मार्च को सलीम हड्डी ने अपने कुछ और साथियों के साथ जाकर प्रदीप जैन को गोली मार दी। हत्या के बाद जैन की तेरहवीं के दिन सलेम ने जैन की विधवा को फोन किया और राक्षसी हंसीं-हंसते हुए उससे कहा कि वो अपने देवर सुनील जैन को कहे कि वो अनीस इब्राहिम की मांग पूरी करे, नहीं तो उसका भी वही हश्र होगा, जो प्रदीप का हुआ है। सुनील, प्रदीप की हत्या के वक्त गवाह भी थे।
२००२ में अबू सलेम लिस्बन में गिरफ्तार हो गया और फिर तीन साल तक चली कानूनी कार्रवाई के बाद उसे भारत के सुपुर्द किया गया, जिन आठ मामलों में भारत ने उसका प्रत्यर्पण मांगा उनमें प्रदीप जैन की हत्या का भी मामला था। चूंकि इस मामले में पुलिस ने टाडा जैसा आतंकवाद विरोधी कानून लगाया था, इसलिए मामले की जांच महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते को सौंपी गयी। पुलिस ने बतौर गवाह प्रदीप जैन के भाई सुनील जैन को भी पेश होने के लिए कहा।
सुनील जैन गवाही देने के लिए तैयार थे, लेकिन परिवार के वरिष्ठों ने उन पर बड़ा दबाव डाला कि वे सलेम जैस आदमी के खिलाफ गवाही न दें। उन्हें गवाही न देने के लिये कसम खिलाई गई। सुनील चाहते तो वे गवाही के दौरान मुकर जाते, लेकिन उनकी अंतरात्मा ने साथ न दिया। अदालत में सुनील ने बेखौफ होकर अपनी गवाही दी। इस मामले में १६ फरवरी २०१५ को अदालत ने अबू सलेम समेत कुल चार आरोपियों को उम्रवैâद की सजा सुनाई। अगर सुनील ने हिम्मत न दिखायी होती तो प्रदीप जैन के हत्यारों को उनके किये की सजा न मिल पाती।

अन्य समाचार