जीतेंद्र दीक्षित
अंधविश्वास से पुलिसकर्मी भी अछूते नहीं हैं। कई पुलिसकर्मी हैं, जो दैवीय शक्ति में यकीन करते हैं और किसी व्यक्ति या वस्तु को शुभ या अशुभ मानते हैं। ऐसा ही एक किस्सा मुंबई पुलिस की एक कार का है, जिसे तमाम पुलिसकर्मियों ने पनौती या शापित करार दिया था और उसको इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया, लेकिन एक पुलिस अधिकारी ने हिम्मत दिखाई और उसको अपना लिया।
यह कहानी है उस क्वालिस कार की, जो २६ नवंबर २००८ की रात मुंबई में हुए आतंकी हमले में खबर का हिस्सा बनी। वैसे तो यह कार पायधुनी डिविजन के एसीपी की थी लेकिन उस रात कुछ ऐसे घटनाक्रम घटे कि एसीपी तो कार में सवार नहीं हुआ लेकिन तीन वरिष्ठ पुलिसकर्मी चार कांस्टेबलों के साथ इसमें दाखिल हुए। ड्राइविंग सीट पर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर विजय सालस्कर थे, उनकी बगल की सीट पर एडिशनल कमिश्नर अशोक काम्टे बैठे औैर बीच की सीट पर आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे थे। चारों कांस्टेबल सबसे पीछे की सीटों पर बैठे।
गोलियों की आ रही आवाज से इन्होंने अंदाजा लगाया कि आतंकवादी कामा अस्पताल वाली गली में छुपे हुए हैं। उनकी धरपकड़ के लिए यह गाड़ी उस गली में घुसी। इस दौरान गाड़ी जब एक एटीएम के सामने से गुजर रही थी, तो झाड़ियोंं की तरफ से गाड़ी पर अंधाधुंध फायिंरग की गई। आगे की सीट पर बैठे अशोक काम्टे ने भी गोलियां चलार्इं, लेकिन आतंकियों की ओर से चलाई गई गोली उनके सिर में लगी और वे शहीद हो गए। अचानक हुए इस हमले में विजय सालस्कर और हेमंत करकरे भी शहीद हुए। जब कार में बैठे तीनों अधिकारियों की मृत्यु हो गई तो आतंकी इस्माइल और अजमल कसाब ने उनके शवों को उतार कर गली के किनारे फेंक दिया। इसके बाद वे गाड़ी लेकर मेट्रो जंक्शन की तरफ गए, जहां कई पुलिसकर्मी और पत्रकारों की भीड़ लगी हुई थी। गाड़ी में बैठे हुए ही अजमल कसाब ने भीड़ की तरफ फायरिंग की, इसमें अरुण चिट्टे नाम के पुलिसकर्मी की मृत्यु हो गई और एक टीवी चैनल के वैâमरामैन की उंगली उड़ गई।
उसी रात गिरगांव चौपाटी पर हुए एनकाउंटर में मुंबई पुलिस के हाथों इस्माइल मारा गया और अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया। वो क्वालिस कार उस आतंकी हमले का एक सबूत भी थी। जांच से जुड़ी तमाम कार्रवाई पूरी होने के बाद उस कार को मुंबई पुलिस के मोटर परिवहन विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया। कार की हालत खराब थी। उसमें गोलियों के निशान थे। मैकेनिकों ने कुछ वक्त में कार का कायाकल्प करके उसे नया जैसा बना दिया। अब कार फिर एक बार इस्तेमाल के लिए तैयार थी, लेकिन मुंबई पुलिस का कोई भी अधिकारी उस कार को लेने को तैयार न था।
२०१० में एक अखबार ने खबर छापी कि २६-११ वाली क्वालिस को अधिकारी ले नहीं रहे हैं। चूंकि उसी कार में तीनों अधिकारी की हत्या हुई थी, इसलिए उस कार को पुलिस अधिकारी शापित या पनौती मान रहे थे। करीब दो सालों तक वो कार गैरेज में ही खड़ी थी। कुछ ने सलाह दी कि कार को २६-११ की याद के तौर पर किसी म्यूजियम में रख दिया जाए। यह खबर जब मुंबई पुलिस के सीनियर इंस्पेक्टर शमशेर खान पठान ने पढ़ी तो उनकी बांछें खिल गर्इं। पठान पायधुनी पुलिस थाने के प्रभारी थे। उन्हें जो कार दी गई थी, वो बार-बार बिगड़ जाती थी और उन्होंने दूसरी कार देने का निवेदन वरिष्ठ अधिकारियों से किया था। उन्होेंने शापित मानी जा रही उस क्वालिस को लेने की इच्छा जताई और अगले ही दिन मोटर परिवहन विभाग के कर्मचारियों ने उसे पायधुनी पुलिस थाने के बाहर लाकर खड़ा कर दिया। पठान ने कार को माला पहनाई, प्रार्थना की और नारियल फोड़कर कार में सवार हो गए। उन्होेंने कहा कि वे इस कार को शापित नहीं मानते बल्कि इस कार की सवारी करना उनके लिए गर्व की बात है क्योंकि इसी कार में उनके तीन साथियों ने शहादत हासिल की। यह कार उनके लिए व मुंबई पुलिस के लिए गौरव का प्रतीक है। शापित माने जाने वाली कार को अपनाकर पठान चर्चित तो हो गए, लेकिन इससे पहले भी उनकी एक पहचान रही है। पठान ही वो पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के दाहिने हाथ छोटा शकील को उसके भारत से भागने के पहले एकमात्र बार गिरफ्तार किया था। २०११ में बतौर एसीपी रिटायर होने के बाद पठान ने राजनीति का रुख किया और एक संगठन बनाया ‘आवामी विकास पार्टी’। इस पार्टी का मकसद दलितों और मुस्लिमों को न्याय दिलाना था। साल २०२३ में पठान का निधन हो गया।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)