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गड़े मुर्दे : जब एजेंसियों के बीच संवादहीनता से विफल हुआ ऑपरेशन दाऊद

 

जीतेंद्र दीक्षित
दाऊद इब्राहिम न केवल मुंबई पुलिस के लिए एक वांछित अपराधी है, बल्कि देश की बाकी खुफिया और जांच एजेंसियां भी उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहीं हैं। भले ही कई बार देश की तमाम एजेंसियां एक ही मकसद पर काम कर रहीं हों, लेकिन कुछेक बार आपसी तालमेल न होने की वजह से वे एक-दूसरे का काम भी खराब कर देतीं हैं। कई बार एक एजेंसी, दूसरी एजेंसी की अज्ञानता की वजह से अपने मिशन को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाती। ऐसा ही हुआ था साल २००५ में, जब मुंबई पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के बीच तालमेल न हो पाने के कारण दाऊद को खत्म का मिशन खटाई में पड़ गया था।
विकी मल्होत्रा और फरीद तनाशा नाम के छोटा राजन गिरोह के दो सदस्यों को मुंबई पुलिस जबरन उगाही के मामले में तलाश रही थी। दोनों के खिलाफ और भी कई आपराधिक मामले दर्ज थे। मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच ने उनके मोबाइल फोन निगरानी पर डाल रखे थे। उनके फोन सुनने पर पता चला कि वे दिल्ली के बाराखंबा रोड पर एक होटल में किसी के साथ मुलाकात करने वाले हैं। उस वक्त मुंबई क्राइम ब्रांच की मुखिया मीरा बोरवणकर थीं। उन्होेंने तुरंत धनंजय कमलाकर, जो कि उस वक्त डीसीपी, डिटेक्शन थे, को दिल्ली के लिए निकलने को कहा। कमलाकर ने क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ इंस्पेक्टर दिलीप पाटील को कुछ और पुलिसकर्मियों के साथ आगे निकलने के लिए कहा।
जब मुंबई पुलिस की टीम बताई हुई जगह पर पहुंची तो पाया कि फरीद तनाशा और विकी मल्होत्रा किसी शख्स के साथ बातचीत कर रहे हैं। उन्होेंने तुरंत तीनों को हिरासत में ले लिया। तीसरे शख्स ने अपना परिचय अजीत डोभाल (मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) के रूप में दिया और बताया कि वे आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) के एक ऑपरेशन के सिलसिले में तनाशा और मल्होत्रा के साथ बैठक कर रहे थे। दरअसल, डोभाल आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर थे और सेवानिवृत्त होने के बाद भी आईबी के लिए काम कर रहे थे। पुलिस अधिकारियों ने यह बात फोन करके बोरवणकर को बताई। बोरवणकर ने आईबी की महाराष्ट्र इकाई से फोन पर पृष्टि करने की कोशिश की कि क्या दोनों का इस्तेमाल किसी मिशन के लिए किया जा रहा है। आईबी ने इंकार कर दिया। इसके बाद डोभाल को तो छोड़ दिया गया, लेकिन फरीद तनाशा और विकी मल्होत्रा को पकड़ कर पुलिस मुंबई ले आई।
दरअसल, तनाशा और मल्होत्रा का वाकई में दाऊद को खत्म करने के मिशन में इस्तेमाल किया जाना था। ‘दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है’ वाली कहावत पर अमल करते हुए दाऊद को खत्म करने की खातिर हमारी एजेंसियां दाऊद के दुश्मन छोटा राजन की मदद ले रहीं थीं…लेकिन जिन लोगों की मदद ली जा रही थी, वे मुंबई पुलिस की नजर में अपराधी थे और पकड़े गए। आईबी अपने खुफिया मिशन की जानकारी बाहरी संगठनों को नहीं देती। ऐसे मिशन की जानकारी खुद आईबी के भीतर भी चुनिंदा अफसरों के पास ही रहती है। इसलिए जब मीरा बोरवणकर ने तनाशा और मल्होत्रा को हिरासत में लेते हुए इस बात की पृष्टि करनी चाही कि क्या वे किसी मिशन में इस्तेमाल होंगे तो आईबी ने इंकार कर दिया। उन्हें लगा कि दोनों गिरफ्तारी से बचने के लिए झूठ बोल रहे हैं।
तनाशा और मल्होत्रा की गिरफ्तारी की खबर मुझे उस वक्त मिली, जब क्राइम ब्रांच की टीम दोनों को लेकर दिल्ली हवाई अड्डे पहुंच रही थी। मैंने अपने सूत्रों से खबर की पृष्टि करके स्टार न्यूज पर यह खबर ब्रेक कर दी। इसके बाद मीडिया के सभी चैनल इस खबर को बड़े पैमाने पर दिखाने लगे। इसके बाद मुंबई पुलिस पर शक जताया जाने लगा कि पुलिस महकमे में मौजूद दाऊद के लोगों ने यह मिशन असफल कर दिया। पूरी घटना पर मीरा बोरवणकर ने विस्तार से अपनी आत्मकथा ‘मैडम कमिश्नर’ में सफाई दी है। कुल मिलाकर यह गड़बड़ी दोनों एजेंसियों की संवादहीनता के कारण हुई थी। साल २००८ में हुए मुंबई आतंकी हमले के बाद पुलिस और खुफिया एजेंसियों के बीच अब बेहतर तालमेल होता है और सभी एजेंसियां एक दूसरे के साथ खुफिया जानकारी साझा करतीं हैं। कुछ वक्त जेल में बिताने के बाद फरीद तनाशा और विकी मल्होत्रा को जमानत मिल गई। साल २०१० में छोटा राजन गिरोह से ही अलग होकर भरत नेपाली ने तनाशा की चेंबूर में उसके घर के भीतर ही हत्या करवा दी। कुछ वक्त बाद भरत नेपाली की भी हत्या हो गई।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

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