अनिल मिश्र / रांची
झारखंड के साइबर ठगों ने पूरे देश में उत्पात मचा रखा है। ये ठग फोन करके बड़ी सफाई से लोगों को उनके कार्ड आदि बंद होने का डर दिखाकर उन्हें लूटते आए हैं। पर ठगी का यह तरीका काफी प्रचलित हो चुका है इसलिए अब इन ठगों ने नया तरीका अपनाया है। ठगों के ‘जेनरेशन जेड’ जालसाजों की इस पीढ़ी ने अब एआई से असली जैसे कई फेक ऐप बना डाले हैं, जो पूरा फोन ही हैक कर लेते हैं। ये ऐसे लोकप्रिय ऐप की नकल हैं, जिससे असली-नकली में अंतर करना नामुमकिन हो गया है। ऐसे करीब १०० ऐप बनाकर जामताड़ा के ये जेनरेशन जेड दूसरे साइबर अपराधियों को बेच भी चुके हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि सावधानी हटी नहीं कि जेब कटी!
बता दें कि झारखंड का जामताड़ा एक पिछड़ा इलाका है। यहां शिक्षा की कमी के कारण अपराध पनपते हैं। खासकर साइबर अपराध के मामले में जामताड़ा के जालसाजों ने पूरी दुनिया की नाक में दम कर रखा है।
दूसरे ठगों को बेच रहे हैं
ऐप बनाकर ये ठग दूसरे ठगों को २०-२५ हजार रुपए में बेच रहे हैं। १०वीं-१२वीं पास इन साइबर अपराधियों द्वारा बनाए गए ऐप को डाउनलोड करते ही मोबाइल, लैपटॉप का नियंत्रण उनके पास चला जाता है और वे अपनी मर्जी से कुछ भी करने में सक्षम हो जाते हैं।
‘चैटजीपीटी’ ने बनाया विशेषज्ञ
जामताड़ा के साइबर अपराधी अब ‘चैट जीपीटी’ और ‘एआई’ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद से ठगी के ऐप बना रहे हैं। इन ठगों ने पहले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा। इसके बाद ‘चैटजीपीटी’ और अन्य ‘एआई’ की मदद से खुद ही ऐप बनाने के विशेषज्ञ बन गए हैं।
‘डीके बोस’ ने उड़ाए होश!
जामताड़ा के साइबर अपराधी अब हद से ज्यादा हाइटेक हो चुके हैं। अब ये बड़े-बड़े सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को भी पीछे छोड़ चुके हैं। इन अपराधियों ने ‘एआई’ की मदद से ठगी के ऐप बना डाले हैं और इसे दूसरे अपराधियों को भी बेच रहे हैं। हाल ही में साइबर अपराध जगत के कुख्यात अपराधी डीके बोस की गिरफ्तारी के बाद इस जेनरेशन जेड के हाइटेक ठगी का खुलासा हुआ है।
ताज्जुब की बात है कि गिरफ्तार सभी अपराधी महज १०वीं-१२वीं पास हैं। महबूब, सैफुद्दीन और शेख बेलाल साइबर अपराधियों के बीच डीके बोस के नाम से जाने जाते हैं। इसी नाम से वह दूसरे साइबर अपराधियों को ठगी के बनाए गए अपने ऐप बेचते हैं। ठगी के लिए बनाये गये ऐप बेचने के लिए इन्होंने वेब पोर्टल भी बना रखा है। विभिन्न तरह का ब्योरा रखने के लिए सर्वर में स्पेस भी खरीद रखा है। पुलिस की गिरफ्त में आए साइबर अपराधी दूसरे साइबर अपराधियों को ऐप बेचने के अलावा ४० प्रतिशत कमीशन पर बैंक अकाउंट की सुविधा देते हैं।
एसपी एहतेशाम वकारिब ने साइबर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रशिक्षु आईपीएस राघवेंद्र शर्मा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया। इसमें प्रशिक्षु डीएसपी चंद्रशेखर और इंस्पेक्टर जयंत तिर्की को शामिल किया। इस टीम ने गत २५ जनवरी को छह साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया था। इसमें महबूब आलम, सैफुद्दीन अंसारी, आरिफ अंसारी, जसीम अंसारी, शेख बेलाल और अजय मंडल शामिल हैं। इनमें महबूब और अजय मंडल पहली बार गिरफ्तार हुए हैं।
ऐप बना कर बेचने से पहले उसे वायरस पोर्टल पर डालकर यह देखते हैं कि इसमें कोई वायरस है या नहीं। इसके बाद चैटजीपीटी की मदद से वायरस हटाने और कोडिंग करने के बाद इसे दूसरे साइबर अपराधियों को बेचते हैं।
पुलिस की जांच में पाया गया कि इन अपराधियों ने एक साल पहले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा है। इसके बाद खुद ही ऐप बना कर बेचने लगे, ताकि पुलिस की नजरों से बचे रहें। इन साइबर अपराधियों द्वारा ऐप बनाने में किसी तरह की परेशानी होने पर ‘चैटजीपीटी’ और अन्य ‘एआई’ की मदद ली जाती रही है।