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सलाहकारों के भरोसे केंद्र सरकार! … रु. ३०२ करोड़ की फिजूलखर्ची

 १,४९९ लोगों को जा रहा है बेवजह का ‘मानधन’
 पूर्व नौकरशाह इस परंपरा के हैं विरोधी

पिछले १० वर्षों से देश कौन चला रहा है? इस सवाल के जवाब में आप कहेंगे मोदी सरकार। पर जरा रुकिए यह तो वह जवाब है, जो सबको पता है। वैसे यह असली जवाब नहीं है। सही जवाब तो एक आरटीआई से मिली जानकारी में मिला है। इसके अनुसार, खुद सरकार ने माना है कि सरकार के ४४ प्रमुख विभाग सलाहकारों की भारी-भरकम फौज के भरोसे चल रहे हैं। और यह सलाह कोई मुफ्त नहीं है बल्कि मोदी सरकार इनके ऊपर हर साल ३०२ करोड़ रुपए की मोटी रकम ‘मानधन’ के रूप में खर्च कर रही है। मोदी सरकार द्वारा सलाहकारों की इतनी भारी फौजों की तैनाती को अच्छा नहीं माना जा रहा है। इसका कारण है कि इससे उनके कामकाज की गुणवत्ता पर असर पड़ना स्वाभाविक है। आश्चर्य की बात है कि ये अधिकारी देश के सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के बाद केंद्रीय सेवा में चुने जाते हैं। वरिष्ठ नौकरशाह लंबे समय से सरकारी कामकाज के लिए बाहरी सलाहकारों की नियुक्ति की परंपरा का विरोध करते रहे हैं।
पूर्व वैâबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर कहते हैं, ‘नियमित सरकारी काम को सलाहकारों को आउटसोर्स करने की प्रवृत्ति अंतत: प्रशासन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।’ ‘कंसल्टेंसी राज सभी सरकारी बीमारियों का इलाज नहीं’ शीर्षक वाले एक लेख में चंद्रशेखर ने दुनियाभर में कई परामर्श त्रुटियों को नोट किया है और बाहरी सलाहकारों पर भरोसा करने में ‘जवाबदेही को सबसे बड़ी हानि’ कहा है। हिंदुस्थान में सार्वजनिक प्रशासन की समस्या ज्ञान की कमी या योग्य, अच्छी तरह से प्रशिक्षित अधिकारियों की अनुपलब्धता नहीं है। कई भारतीय सिविल सेवकों ने विशेष क्षेत्रों में जबरदस्त परिणाम हासिल किए हैं। उन्होंने स्थायी सिस्टम और संस्थान बनाए हैं और उनके पास कॉर्पोरेट इंडिया में सर्वश्रेष्ठ जितनी अच्छी योग्यताएं हैं। इसके लिए सभी मंत्रालयों, विभागों और संस्थानों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। कंसल्टेंसी बेहतर कार्य के लिए कोई शॉर्टकट प्रदान नहीं कर सकती है। सरकार को जोखिम उठाना होगा और अपनी जिम्मेदारी खुद लेनी होगी।’ बहरहाल, आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, १,४९९ सलाहकारों के अलावा भी करीब २०,००० अन्य कर्मचारियों की सेवा केंद्र सरकार ले रही है। ये उसके जो उसके नियमित कर्मचारी नहीं हैं। मिली जानकारी के अनुसार, इन सलाहकारों की भारी-भरकम फौज में १,०३७ युवा पेशेवर, ५३९ स्वतंत्र सलाहकार, ३५४ डोमेन विशेषज्ञ, १,४८१ सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी और ७६ विभागों द्वारा सीधे या आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से अनुबंध पर नियुक्त किए गए २०,३७६ कम वेतन वाले कर्मचारी शामिल हैं। हालांकि, इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि सरकार पेशेवरों के इस दूसरे समूह को भुगतान करने पर कितना खर्च करती है। उपरोक्त जानकारी केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत व्यय विभाग द्वारा अनुबंध के आधार पर उनके साथ काम करने वाले व्यक्तियों / फर्मों के बारे में ७६ विभागों से प्राप्त जानकारी के आधार पर एकत्रित की गई थी। इनमें बाहरी एजेंसियां, युवा पेशेवर, स्वतंत्र सलाहकार, डोमेन विशेषज्ञ, आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से लिए गए कर्मी, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों और ऋण पर नियामक निकायों के अधिकारी, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और हाउस कीपिंग, मल्टी-टास्किंग के लिए काम पर रखे गए लोग शामिल हैं। यहां उल्लेखनीय है कि सलाहकारों में शामिल चार बड़े दिग्गज अर्नेस्ट एंड यंग, पीडब्ल्यूसी, डेलॉइट और केपीएमजी ने २०१७ से २०२२ के बीच केंद्र से लगभग ४५० करोड़ रुपए की परियोजनाएं हासिल कीं। यानी इस मामले में कुछ मिलीभगत और भ्रस्टाचार की बू भी आ रही है। बाहरी एजेंसियों से सबसे अधिक सलाहकारों वाले शीर्ष छह विभाग हैं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण (२०३), ग्रामीण विकास (१६६), कृषि और किसान कल्याण (१४९), आवास और शहरी प्रशासन मंत्रालय (१४७), महिला और बाल विकास (११२) और सड़क परिवहन और राजमार्ग (९९)। कुल मिलाकर १,४९९ में से ये ८७६ या ५८ फीसदी हैं।

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