सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र की अस्मिता से खिलवाड़ का नतीजा क्या होता है, ये कल मोदी और शाह की जोड़ी ने देख लिया। जिस महाराष्ट्र में शिवसेना का हाथ पकड़कर भाजपा ने मजबूती हासिल की थी, उसी महाराष्ट्र में जब मोदी की भाजपा और शाह की अनीति ने शिवसेना का विभाजन कराया, एनसीपी को तोड़ा तो उसका सबक उन्हें मिलना ही था। और कल चुनाव नतीजों में भाजपा और उसके गद्दार साथियों को वो मिला भी। लोकसभा चुनाव शुरू होने के पहले से यह माना जा रहा था कि महाराष्ट्र में भाजपा को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। शिवसेना के साथ युति करके दोनों बार ९० प्रतिशत सीटें जीतनेवाली भाजपा गठबंधन को इस बार एक तिहाई सीटें भी नहीं मिलीं। इस आकलन को कल नतीजों की मान्यता भी मिल गई। महाराष्ट्र की कुल ४८ सीटों में से भाजपा गठबंधन को महज १७ सीटें प्राप्त हुईं। उसमें भी अजीत पवार की चुराई हुई एनसीपी का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। राजनीति में गंध मचाने वालों के लिए यह किसी बड़े सबक से कम नहीं है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष और समग्र इंडिया गठबंधन ने महाराष्ट्र में ३० सीटें जीतकर धूर्तता की राजनीति करनेवालों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है, परंतु यह तो शुरुआत है भाजपा मुक्त महाराष्ट्र की। अभी विधानसभा के साथ-साथ मुंबई समेत तमाम महानगरपालिकाओं से भी भाजपा और उनके पिट्ठुओं की विदाई होनी है। बस इंतजार कीजिए!