तुम हो मेरे चांद जिसकी चांदनी हूं मैं
फिर भी मन कहता है शायद बंदिनी हूं मैं
मन के कारावास से मैं न छूट पाऊंगी
तुम न आये अब भी तो मैं रूठ जाऊंगी
तुम मेरे आकाश मैं धरणी तुम्हारी
तुम हो सीमाहीन सागर मैं तरणी तुम्हारी
कब सुनोगे प्राण !तुम मन बांसुरी की धुन
प्रेम-कुसुमों को ह्रदय में कब रखोगे चुन
प्रेम के आव्हान को अब सुन भी लो प्रियवर
आहुति दे दो ह्रदय के यज्ञ में हंस कर
-डॉ कनक लता तिवारी