दुनिया के चित्रपट के इस दर्पण में,
निकल रहा वह कलाकार
अपनी अदा अपने किरदार में,
मुखौटों में चरित्र हर इंसान निभा रहा…।
कभी आँसू बहा रहा,
कभी खुशियों को वह बाँट रहा
यह रंगमंच है प्यारे,
मुखौटों में चरित्र हर इंसान निभा रहा…।
कहानी-सवाल-नाटक-पटकथा से किरदार बना रहा,
गीत-ग़ज़ल-कविताओं में इंसान ख़ुश रहना सीख रहा
जीवन तो पानी का बुलबुला है, रंगमंच इसे ही बता रहा
मुखौटों में चरित्र हर इंसान निभा रहा…।
जीना इसी का नाम है ज़िन्दगी,
क्योंकि मुश्किलों व तकलीफों के इस भँवर में
जीना भी यहीं है और मरना भी यहीं
मुखौटों में चरित्र हर इंसान निभा रहा…।
ये रंगमंच है चंद घंटों में दर्शक आएंगे और चले जाएंगे,
शो खत्म हो जाएगा तो सब खाली खाली ही हो जाएगा।
यह हाल और हम सब बेहाल हो जाएंगे,
मुखौटों में चरित्र हर इंसान निभा रहा…॥
हरिहर सिंह चौहान
जबरी बाग़ नसिया
इन्दौर मध्यप्रदेश 452001