मुख्यपृष्ठधर्म विशेषचिरौल वाली माता: गौरी-गणेश विराजे हैं एक साथ

चिरौल वाली माता: गौरी-गणेश विराजे हैं एक साथ

 

सामना संवाददाता/विदिशा

पूरे नगर और आसपास चिरौल वाली माता के नाम से प्रसिद्ध देवी मां के मंदिर में वास्तव में गौरी और गणेश विराजमान हैं। यह एक संयोग है कि (सनातन पूजा पद्धति में सर्वप्रथम पूज्य गणेश जी ही है, साथ ही गौरी मां को भी पूजा जाता है) दोनों प्रथम पूज्य एक ही स्थान पर चिरौल वाले मन्दिर में विराजित हैं। न केवल एक स्थान, बल्कि एक ही आसन पर प्रतिष्ठित हैं। लगभग 100 वर्ष पूर्व या इससे भी अधिक समय पूर्व चिरौल के एक पेड़ के नीचे मिट्टी में से प्रगट हुई थीं माताजी। हम जानते ही हैं कि बेसनगर बेतवा के उत्तर तरफ बसा हुआ था, संभावना है कि बेसनगर के निवासियों की खेड़ापति या कुल देवी रही होंगी, मन्दिर भी रहा होगा, काल के गर्त में जैसा बेसनगर समा गया, उसी तरह यह मंदिर भी जमींदोज हो गया होगा।

मिट्टी के ढेरों में दबी होगी मूर्ति
इतिहासकार गोविंद देवलिया ने बताया कि जिस तरह विजय मन्दिर मिट्टी का टीला बन गया था या हेलियोडोरस के स्तम्भ के पास निर्मित भव्य विष्णु मंदिर भी टीले के रूप में बदल गया, वैसे ही यहां मन्दिर भग्न हो गया होगा, मूर्ति मिट्टी में दबी होगी। कालांतर में मिट्टी धसकने से मूर्ति दिखाई पड़ी।
चिरौल के पेड़ के नीचे मिली थी मूर्ति। वहीं रखकर लोगों ने पूजन प्रारम्भ कर दिया। सिध्द स्थान और सिध्द मूर्ति होने के कारण लोगों की आस्था बढ़ती गई।

चिरौल के पेड़ के नीचे ही एक चबूतरे पर विराजमान थी माताजी। एक महात्माजी ने इस स्थान पर रहते हुए पूजा अर्चना प्रारम्भ की थी। महात्मा जी ने अपनी वृद्धावस्था आने पर एक चेले को पूजन सौंप दी और स्वयम ब्रह्मलीन हो गये।

वयोवृद्ध महात्मा जी के चेले श्री ईस्वरानंद जी ने लगभग 50 वर्ष तक सेवा की एवं एक दिन अनायास उनका देहावसान हो गया। भक्तगण उनसे उनके गुरु जी महात्मा जी का नाम भी न जान सके। ईश्वरानंद ने 1975 में देह त्यागी थी। उनके बाद श्री राम छबीले दास जी ने मन्दिर संभाला। इसके बाद 1998 में ट्रस्ट बन गया। अब मन्दिर ट्रस्ट के अधीन है। ट्रस्ट ही पुजारी नियुक्त करता हैं। ट्रस्ट के वर्तमान सचिव गणेश व्यास हैं।

माताजी के दरबार में पिछले 38 वर्ष से दोनों नवरात्रि में नियमित शतचंडी पाठ करने वाले एवं मन्दिर परिसर में ही अनेक बार भागवत पुराण की कथा कहने वाले विष्णु प्रसाद शास्त्री बताते हैं कि इस स्थान का प्रताप ऐसा है कि अकेले में भी आयें,तो भी भजन में मन लगता है। बड़ा सिध्द स्थान है।

मंदिर परिसर में अनेक लोगों द्वारा निर्माण कराए गये हैं।अनेक लोग भंडारा आदि करवाते हैं।कल नगर के उद्योगपति राजकुमार गुप्ता सपरिवार आये हुए थे, पुजारी जी ने बताया कि गुप्ता जी हर नवरात्रि पर भंडारा करवाते हैं। शुध्द घी की नुक्ती बनती है। ऐसे ही अनेक श्रद्धालु जुड़े हुए मन्दिर परिवार में।
नवदुर्गा काल में भक्तों की अपार भीड़ मन्दिर पहुचती है। वैसे तो बारहों माह दर्शनाथियो का आवागमन लगा रहता है।

कोरोना काल में जब नगर में भीड़ न करने के निर्देश थे, महामारी के चलते वैवाहिक गार्डन वगरैह बंद थे, तब अनेक लोगों ने मातारानी के दरबार में विवाह का आयोजन किया और माता की छत्रछाया में विवाह संपन्न हुए। मैया की महिमा निराली है, नगर के काफी दूर होने एवं एकांत स्थान होने के बाद भी नित दर्शन करने हजारों लोग आते हैं।

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