मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनासिटीजन रिपोर्टर :  धूल से पट जाती हैं उल्हासनगर की बसें

सिटीजन रिपोर्टर :  धूल से पट जाती हैं उल्हासनगर की बसें

उल्हासनगर

उल्हासनगर में धूल के चलते दुकानदार सहित निवासी कितने परेशान हैं, इसका अंदाजा शहर में चल रही बसों पर जमी धूल से लगाया जा सकता है। उल्हासनगर की बस सेवा को इक्का नामक पुणे की ठेकेदार कंपनी चला रही है। सुबह के समय जब डिपो से बस निकलती है तो साफ-सुथरी रहती है, लेकिन शाम होते-होते वो धूल से पट जाती है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर, समाज सेवी और पर्यावरण मित्र त्रिभुवन सिंह इस समस्या को प्रकाश में लाए हैं।
त्रिभुवन सिंह ने बताया कि उल्हासनगर में सबसे अधिक पर्यावरण की ऐसी की तैसी की जा रही है। उल्हासनगर के पर्यावरण के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य की चिंता व्यक्त करते हुए त्रिभुवन सिंह बताते हैं कि उल्हासनगर में कचरा, कीचड़ और धूल की भरमार है। उल्हासनगर शहर के लोग पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझते। यही वजह है कि सरकार द्वारा लाख मना करने के बावजूद पर्यावरण का विनाश निरंतर जारी है। उल्हासनगर में आज भी प्रतिबंधित प्लास्टिक हर फल और सब्जी के ठेलों सहित हर दुकान पर मिल जाती है। सड़क पर हर तरफ धूल ही धूल है। उस धूल को समूल नष्ट करने की बजाय पानी के फव्वारे मारे जाते हैं। पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं। सड़क के किनारे प्रशासन द्वारा लगाए गए पौधों को वाहनों के पहियों द्वारा कुचल दिया गया है। वालधुनी नदी का प्रयोग जहां कचरा फेंकने के लिए किया जा रहा है, वहीं उल्हास नदी का भी यही हाल होता दिखाई दे रहा है। शहर की काफी सड़के खोदी गई हैं, जिसकी वजह से शहर में हर तरफ धूल उड़ रही है। बरसात में सड़क किनारे गंदा पानी जमा होने से कीचड़ जैसी स्थिति हो जाती है। पैदल यात्रियों सहित वाहनों का चलना दूभर हो जाता है। कीचड़ में फिसलकर लोग अपने हाथ-पैर तक तुड़वा लेते हैं। उल्हासनगर मनपा प्रशासन इस मामले में लाचार है। यही वजह है पर्यावरण को बचाने के लिए उल्हासनगर मनपा ने पेड़ लगाने शुरू किए हैं। सड़क पर पानी के फव्वारे मारे जा रहे हैं। बिजली से चलनेवाले वाहनों यानी बसें लाई जा रही हैं। मृतक जानवरों के लिए शमशान बनाया जा रहा है। शहर को कचरा कुंडी रहित बनाने की पहल शुरू है, लेकिन तमाम तरह के प्रयासों के बावजूद सारे प्रयास बेकार साबित हो रहे हैं। मनपा के सारे अभियान फेल होने की वजह लोगों में जागरूकता का अभाव बताया जा रहा है। नालियों में कचरा फेंका जाता है और नालियों से होकर गुजरनेवाली पाइपलाइन से पीने का पानी चोरी कर लिया जाता है। इक्कीसवीं सदी में भी उल्हासनगर की हालत खराब ही है।

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