उल्हासनगर
उल्हासनगर का विकास करने का ढोल पीटनेवालों को क्या शहर की समस्या दिखाई नहीं देती? उल्हासनगर आज समस्या नगर में तब्दील होता दिखाई दे रहा है। उल्हासनगर के लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं और प्रतिवर्ष शहर में विकास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। फिर भी यह अविकसित शहर से भी काफी पीछे है। उल्हासनगर मनपा में भारी-भरकम फंड तो आता है, परंतु वह फंड कथित ठेकेदार, राजनीतिक व भ्रष्ट अधिकारियों की बलि चढ़ रहा है। एक तरफ जहां शहर का विनाश हो रहा है, वहीं कमीशनखोरों का विकास हो रहा है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर सुरेश पाटील ने उल्हासनगर के विकास को विनाश बताते हुए उसकी पोल खोली है।
सुरेश पाटील ने बताया कि उल्हासनगर में कोई विकास नहीं किया गया है। इसकी मिसाल शहर की गंदगी, कमीशन को लेकर नेताओं के झगड़े, नेताओं के हो रहे विकास के कारण उल्हासनगर बदनाम हो रहा है। उल्हासनगर में पानी, बिजली की आंख-मिचौली को लेकर लोग परेशान हैं। शर्मनाक बात तो यह है कि श्मशान भूमि को बनाने के एवज में कमीशन को लेकर सोशल मीडिया पर चले झगड़े उल्हासनगर के नेताओं के भ्रष्ट होने की काली करतूतें जनता के सामने उजागर कर रहे हैं। उल्हासनगर की घटिया टूटी सड़कें मौत को दावत दे रही हैं। पार्विंâग की बड़ी समस्या है। फेरीवाले, रिक्शा चालकों को मेहनत कर पेट भरने नहीं दिया जा रहा है। सड़कों पर धूल उड़ रही है। शहाड के समीप स्थित गुलशन नगर की तरफ जानेवाली डांबर की सड़क इस समय मिट्टी की सड़क दिखाई दे रही है। वालधुनी नदी की सफाई अधर में लटकी है। उल्हासनगर, शहाड, विट्ठलवाड़ी रेलवे स्टेशन मध्य रेलवे के उपनगरीय स्टेशनों में सबसे पिछड़े वर्ग में हैं। रेल यात्रियों को पीने के लिए पानी, शौचालय, स्वचालित सीढ़ी, साफ-सफाई आदि की व्यवस्था सही ढंग से न होने के कारण स्टेशन परिसर बदबूदार हो गया है।
उल्हासनगर रेलवे स्टेशन की इमारत जर्जर दिखाई दे रही है और जगह-जगह के स्लैब गिर रहे हैं। वन रुपी क्लीनिक उपचार सुविधा महीनों से बंद है। शहर की काफी सड़कें भूमिगत नाली के लिए खोदी गई हैं। मानसून पूर्व खोदी गई इन सड़कों के चलते लोगों का जीना हराम हो जाएगा। सरकारी अस्पताल में उपचार की सुविधा बराबर नहीं है, जिसके कारण बीमार लोगों को मुफ्त उपचार के लिए परेशान होना पड़ रहा है। लोगों को उनके मकान का सनद अर्थात मालिकाना हक नहीं मिल रहा है। महाविकास आघाड़ी की सरकार ने पांच सौ वर्ग फुट मकान को टैक्स मुक्त किया था, उसे अभी तक अमल में नहीं लाया जा सका है। पादचारी पथ के गटर टूटे हुए हैं, सड़कें चलने लायक नहीं हैं। बगीचों और खेल के मैदान बराबर नहीं हैं। पर्यावरण की ऐसी की तैसी हो रही है। वायु प्रदूषण चरम पर है। शहर के डंपिंग ग्राउंड के चलते स्थानीय लोग परेशान हैं। शहर की सड़कें धूल से भरी पड़ी हैं। नालियां कचरे से भरी पड़ी हैं। परिवहन सेवा नाम की है। उल्हास नदी के किनारे बन रहे विसर्जन घाट को शराबियों ने शराब का घाट बना दिया है। सरकारी विद्यालय में बच्चों की संख्या घट रही है। उच्च माध्यमिक विद्यालय नहीं है, जिसके कारण प्राइमरी विद्यालय से निकले बच्चे महंगी फीस, पढ़ाई के साहित्य के अभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। अवैध निर्माण चरम पर है। अपराध भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। शहर में सुरक्षा कैमरा नहीं है। उल्हासनगर शहर केवल नाम का उल्हास नगर बनकर रह गया है।