उल्हासनगर
नगरसेवकों का कार्यकाल समाप्त हो गया है। कोरोना, फिर सत्ता परिवर्तन के बाद हार के भय से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे निष्ठावान शिवसैनिकों की निष्ठा को देखकर चुनाव नहीं करा रहे हैं। चुनाव न कराने के पीछे का आकलन भी कुछ ऐसा है, मानो जैसे चुनाव आयोग को उन्होंने वश में कर रखा हो। उल्हासनगर की व्यवस्था सुचाारु रूप से चले, इसके लिए २२ महीने से प्रशासक नियुक्त कर प्रशासकीय कारोबार किया जा रहा है। प्रशासक अजीज शेख का प्रशासकीय कारोबार ठीक नहीं है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर राजन वेलकर ने उल्हासनगर प्रशासन के प्रति अपनी खिन्नता व्यक्त की है।
राजन वेलकर का कहना है कि उल्हासनगर मनपा चुनाव आखिरी बार फरवरी २०१७ में हुआ था, जिसे करीब ७ साल हो गए हैं। प्रशासक को पूरा अधिकार होने के बावजूद उल्हासनगर के लोग निरुत्साहित हैं। २०१७ में हुए मनपा चुनाव में ४८२ उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया और उसमें से ७८ उम्मीदवार सफल होकर मनपा सदन में नगरसेवक बनकर पहुंचे। इसके अलावा पांच मनोनीत नगरसेवक भी नियुक्त किए गए। काफी नगरसेवकों ने विकास के नाम पर केवल अपना विकास किया। चुनाव में चार लोगों का पैनल रहा। चुने हुए नगरसेवकों ने कई करोड़ रुपए विकास के नाम पर खर्च किए, परंतु आश्चर्य की बात यह है कि विकास के नाम पर खर्च किए गए और विकास का नारा देने वाले सत्ताधारी आज जहां-जहां काम किए उसमें से काफी काम खराब हो गए हैं। आज उल्हासनगर की हालत ग्राम पंचायत से भी खराब है। उल्हासनगर के लोग शुद्ध पानी, रास्ते, पार्विंâग और पर्यावरण जैसी हर तरह की समस्याओं से परेशान हैं। सैकड़ों झोपड़पट्टियों में शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं, हजारों झोपड़पट्टियों में शौचालय, पानी और रास्ते की कमी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घर-घर शौचालय की घोषणा के तहत काफी लोगों ने फॉर्म तो भरा है, लेकिन उन्हें प्रोत्साहन राशि नहीं दी है। वहीं पर सैकड़ों लोगों ने पैसे तो ले लिए परंतु शौचालय नहीं बनवाए। लोगों की व्यथा को लेकर शासक और प्रशासक दोनों ही नाकाम साबित हो रहे हैं। सबसे अधिक परेशान झोपड़पट्टियों में रहनेवाले लोग हैं। प्रशासन उल्हासनगर को उल्लासित करने में असफल साबित हो रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि उल्हासनगर का क्षेत्र ८० प्रतिशत झोपड़पट्टियों से घिरा हुआ है। इसके बावजूद विकास के मामले में काफी पीछे है। उल्हासनगर के पीछे रहने का मूल कारण ठेकेदारों का शहर की बजाय निजी विकास के बारे में सोचना है।