मुख्यपृष्ठनए समाचारसिटीजन रिपोर्टर : आदिवासियों की अज्ञानता को भुना रहे हैं होशियार लोग!

सिटीजन रिपोर्टर : आदिवासियों की अज्ञानता को भुना रहे हैं होशियार लोग!

बदलापुर

महाराष्ट्र सरकार बता रही है कि महाराष्ट्र में हर वर्ग के लोगों पर ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन इस बात में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। ऐसा खुलासा ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर राजेश फक्के ने किया है। अंंबरनाथ, बदलापुर, वांगनी और मुरबाड तक के क्षेत्र के काफी गांवों के आदिवासियों को तमाम तरह की असुविधाएं झेलनी पड़ रही हैं। इन बस्तियों में अनाज, पानी, रास्ते, विद्यालय सहित उनके मकान भी जर्जर अवस्था में हैं।
राजेश फक्के ने बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से देखा है कि ठाणे जिला मुख्यमंत्री का जिला है। इसके बावजूद अंबरनाथ तहसील में आनेवाले बदलापुर, वांगणी के साथ ही मुरबाड तहसील में बड़ी संख्या में आदिवासी निवास करते हैं। आदिवासियों की स्थिति दयनीय है। आदिवासी लोगों को पानी, रास्ते और राशन के लिए परेशान होना पड़ रहा है। राशन दुकानदार आदिवासियों का राशन कार्ड अपने पास ही रखता है। नेट और मशीन में खराबी बताकर मजबूर लोगों को प्रतिमाह राशन न देकर राशन खुद दुकानदार गटक रहे हैं। आने-जाने के लिए रास्ते बराबर नहीं हैं। इसके अलावा पानी की पर्याप्त पूर्ति भी नहीं की जाती है, क्योंकि आदिवासी लोग पहाड़ी पर ऊंचाई पर रहते हैं, जिस कारण पानी वहां तक बराबर नहीं पहुंच पाता है। परिसर में रास्ता तक नहीं बनाया गया है। अब सवाल यह है कि आदिवासी अपने घर तक वैâसे आएं और जाएं? आदिवासियों के बच्चों को शिक्षा के लिए दूर तक ऊबड़-खाबड़ मार्ग से आना-जाना पड़ता है। आदिवासियों को बरसात के कुछ महीने बाद तक पानी कुएं से मिलता है, परंतु कुछ दिनों में कुएं में पानी खत्म हो जाने के बाद उन्हें जलकुंभ पर निर्भर रहना पड़ता है। आदिवासी पाड़ों के समीप बनाए गए फॉर्म हाउस के लोग आदिवासियों का पानी खींच लेते हैं। सप्ताह में दो दिन आधे घंटे पानी दिया जाता है। काफी आदिवासी बस्तियों के रास्ते बराबर नहीं है। ऐसी स्थिति में अत्यावश्यक सेवा वैâसे मिल सकती है। आग लगने पर अग्निशमन दल घटनास्थल पर बड़ी ही मुश्किल से पहुंचता है। विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र नजदीक नहीं हैं, जिसके कारण आदिवासियों के काम पर जाने की स्थिति में उनके बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं। इसके चलते देश में निरक्षरों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। आदिवासी पाड़ों के लोगों को पूरक भोजन तक नहीं दिया जा रहा है। आदिवासियों की रक्षा की जिम्मेदारी ग्राम सेवक, लेखपाल और सेक्रेटरी पर रहती है। इसके बावजूद आदिवासियों का समुचित विकास का न हो पाना सरकार की घोषणा पर सवालिया निशान पैदा कर रहा है। आदिवासी बस्तियों की जांच उच्चाधिकारी के मार्फत कर दोषियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

 

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