मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनासिटीजन रिपोर्टर : असुरक्षित हैं कामगार

सिटीजन रिपोर्टर : असुरक्षित हैं कामगार

मुंबई

केंद्र व राज्य सरकार की अनदेखी के चलते देश में आए दिन कामगारों की मौत हो रही है। सरकार ने कामगारों की मौत पर रोक लगाने के लिए औद्योगिक कामगार सुरक्षा मंत्रालय, कामगार मंत्रालय के अधीन उनकी देख-रेख में तमाम अधिकारी रखे हैं, परंतु अधिकारियों ने रिश्वत के बल पर प्राणघातक कंपनियों को भी चलाने की मान्यता दे रखी है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर कामगार नेता संदीप गायकवाड़ ने कामगार की दशा व व्यथा का वर्णन किया है।
संदीप गायकवाड़ ने बताया कि आज देश में काफी मजदूरों की हालत बंधुआ मजदूरों जैसी है। कामगारों को परिचय पत्र तक नहीं दिया जाता। नाके पर काम करनेवाले मजदूर क्या करें? इतनी महंगाई में अगर वो अपने अधिकारों की मांग करता है तो उसे दूसरे दिन काम से निकाल दिया जाता है। सरकार के नियम सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। किसी तरह अमल नहीं हो रहा है। इसकी खास मिसाल असंगठित कामगार हैं। इमारत पर ऊंचाई पर काम करते समय कई बार गिरने से कामगार की मौत हो जाती है। कामगार की मौत होने के बाद पुलिस मालिक, ठेकेदार की बजाय मृतक को ही जिम्मेदार बताने की कोशिश करती है, जबकि कामगार की मौत के लिए ठेकेदार या फिर मालिक जिम्मेदार होता है। कई बार कामगार को उसकी मौत के एवज में लाख, पचास हजार रुपए देकर मामले को रफा-दफा किया जाता है। छोटी-मोटी कंपनियों में कामगार की मौत किसी तुच्छ प्राणियों की तरह देखी जा सकती है। कामगार मर जाता है और उसकी मौत को पुलिस द्वारा आकस्मिक मौत बताया जाता है। कोई कामगार दबंग रहा तो पुलिस मालिक अर्थात ठेकेदार को आरोपी बनाती है। एमआईडीसी में तो कामगारों के मरने की घटना प्राय: होती रहती हैं। बड़ा मामला रहा तो उजागर हो जाता है। बड़े विस्फोट, जनहानि के उपरांत ही प्रशासन जागता है। कई सरकारी विभागों को काफी घटनाओं की जानकारी ही नहीं रहती, जिस देश में पुलिस, डॉक्टर, कारखाना निरीक्षक, कामगार आयुक्त भ्रष्ट होंगे। ऐसी जगह के कामगार सुरक्षित वैâसे रहेंगे? असुरक्षित कामगारों के परिवार का भविष्य वैâसा रहेगा? आज लाखों मामले श्रम अदालत में वर्षों से झूल रहे हैं। वर्षों से कामगार और उसका परिवार श्रम अदालत के अलावा अन्य अदालतों के फेरे लगा रहा है। न्याय की आस में कोर्ट, पुलिस की परिक्रमा करते-करते कई लोग मर गए।
बता दें कि इन्हीं में से एक कंपनी मोदी स्टोन टायर जो मुंबई के शिवड़ी परिसर में स्थित थी। उस कंपनी को सितंबर १९९७ में मालिक ने बंद कर दिया। श्रम अदालत, हाई कोर्ट, लिक्वीटेटर के कार्यालय का चक्कर लगा-लगा कर आधे कामगार स्वर्ग सिधार गए। कंपनी हिसाब देगी इस आस में घर से पैसे भरकर केस लड़ रहे हैं। २७ वर्ष से कानूनी लड़ाई शुरू है। कब न्याय मिलेगा कहना कठिन है? मजदूर मजबूर होता है। तमाम न्यायिक यंत्रणा के बावजूद कामगार न्याय के मंदिर का चक्कर लगाते-लगाते एक दिन मर जाता है। मोदी स्टोन टायर कंपनी की तरह ही काफी कंपनी के मजदूर न्यायालय की परिक्रमा कर रहे हैं।

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