लोगों में यदि यह भावना पैदा होने लगी कि देश में इंडिया गठबंधन और राज्य में महाविकास आघाड़ी एक झमेला ही बनकर रह गए हैं, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? जब ये दोनों गठबंधन बने और दोनों ने काम करना शुरू किया तो गठबंधन के हर घटक दल और आम जनता में उत्साह पैदा हो गया। भारतीयों के मन में आत्मविश्वास का संचार हो गया था कि देश पर थोपे गए मनमाने शासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए एक ताकत का निर्माण हुआ है। देश में मोदी को और महाराष्ट्र में अवैध सरकार को हराया जा सकता है यह अहसास बिजली की तरह चमकने लगा था, लेकिन क्या अब ये दोनों मोर्चे निस्तेज और निष्क्रिय होते जा रहे हैं? ये देश के लिए अच्छा नहीं है। नेशनल कॉन्प्रâेंस इंडिया गठबंधन का सदस्य है। इस पार्टी के नेता उमर अब्दुल्ला ने इसी मसले पर बम फोड़ा है कि इंडिया गठबंधन का जन्म ही लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है। अब जब जरूरत खत्म हो गई है तो इंडिया गठबंधन को खत्म कर देना चाहिए। इस मोर्चे के पास न तो कोई विशेष कार्यक्रम है और न ही नेतृत्व। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने के बाद जूनियर अब्दुल्ला के सुर बदल गए हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी-अमित शाह की कृपादृष्टि की जरूरत होगी। क्योंकि यह सच है कि जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित राज्य बन गया, फिर भी अब्दुल्ला के बयानों को नकारा नहीं जा सकता। अब्दुल्ला कहते हैं, इंडिया अलायंस की आखिरी बैठक १ जून २०२४ को हुई थी। उसके बाद हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस बड़ी छलांग नहीं लगा सकी। हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को अच्छा खासा पराभव स्वीकारना पड़ा। इसके बाद इंडिया गठबंधन के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाए जाने लगे। ममता बनर्जी सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि उन्होंने ‘इंडिया गठबंधन’ बनाया है और अब अगर मौका मिला तो मैं इस गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हूं। दूसरे शब्दों में, कांग्रेस नेतृत्व कुछ लोगों को स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इंडिया गठबंधन का पौधा फलता-फूलता नजर नहीं आ रहा है। लालू यादव ने भी यही समानांतर भूमिका रखी। नीतीश कुमार ने पटना में इंडिया गठबंधन की पहली बैठक के मेजबान के रूप में पदभार संभाला। उस पहली ही बैठक में नीतीशबाबू ने भाजपा की विचारधारा और
मोदी की तानाशाही के खिलाफ
एकजुटता से लड़ने का मंत्र दिया, लेकिन इंडिया गठबंधन का ये दिग्गज ही मोदी के साथ आ गया। पंजाब और दिल्ली में आप और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। केरल में कांग्रेस और लेफ्ट के बीच जंग है। प. बंगाल में तृणमूल के खिलाफ कांग्रेस की लड़ाई जारी रहेगी और कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि हर क्षेत्रीय पार्टी को अपनी भूमिका, कार्यकर्ता और अस्तित्व बनाए रखना है और कांग्रेस पार्टी यह समझने को तैयार नहीं है। कई राज्यों में कांग्रेस अपने दम पर नहीं लड़ सकती। उतनी लड़ने की ताकत नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय दलों की थाली के कटोरे में उंगली डालने से बाज नहीं आती। इसका परिणाम महाराष्ट्र जैसे राज्यों में देखने को मिला। एक तथ्य जिसे स्वीकार करने की जरूरत है, वह यह है कि भाजपा की गुफा में घुसे सहयोगी दल साफ हो गए हैं। कांग्रेस को उस रवैये से काम नहीं करना चाहिए। कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और रहेगी। इससे किसी के असहमत होने की कोई वजह नहीं है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा ने कांग्रेस समेत सभी भाजपा विरोधियों में नई ऊर्जा पैदा कर दी है। अब प्रियंका गांधी भी आ गर्इं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे एक अनुभवी नेता हैं, लेकिन इंडिया गठबंधन में जो अव्यवस्था पैदा हो गई है, उसे ठीक करने की जिम्मेदारी किसे लेनी चाहिए? कांग्रेस के श्रीमान राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और वे मोदी की तानाशाही और भ्रष्टाचार के गढ़ पर जोरदार हमला कर रहे हैं। संसद में एकजुट होने वाला विपक्षी दल बाहर अलग-अलग तरीकों से चलता है। आज इंडिया गठबंधन में जो दल हैं उनमें से कुछ दल ‘एनडीए’ यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के भी सदस्य थे। उस मोर्चे का (तब का) अनुभव क्या बताता है? सत्ता में हों या न हों, जब भी कोई राष्ट्रीय प्रश्न उठता, दिल्ली में ‘एनडीए’ की बैठक बुलाई जाती थी। अक्सर नेता प्रमोद महाजन, लालकृष्ण आडवाणी उन राज्यों में जाते थे और वहां पार्टी प्रमुख से चर्चा करते थे। एनडीए के पास भी एक मजबूत संयोजक भी था। लंबे समय तक इस पद पर जॉर्ज फर्नांडिस जैसे वरिष्ठ नेता थे और वे सभी घटक दलों के प्रमुखों के साथ संवाद रखते हुए सम्मानपूर्वक बैठकों का आयोजन करते थे। इन बैठकों की अध्यक्षता कभी अटल बिहारी वाजपेयी तो कभी लालकृष्ण आडवाणी करते थे। इसके अलावा कभी चाय पार्टी होती है तो कभी भोजनादि की। इसलिए
उस गठबंधन के रिश्ते
ऊपरी नहीं थे बल्कि घरेलू थे यह स्वीकार करना होगा। लोकसभा से पहले इंडिया गठबंधन में अच्छा माहौल जरूर था। पटना, बंगलुरु, दिल्ली, मुंबई आदि जगहों पर जबरदस्त बैठकें आयोजित की गर्इं। कई घटक दलों ने अपने-अपने राज्यों में इंडिया गठबंधन की बैठकों की मेजबानी करना स्वीकार किया। सब कुछ बढ़िया चल रहा था। घटक दल जता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजे मिलने के बाद बातचीत के नाम पर ठनठन की स्थिति पैदा हो गई है। अब डी राजा जैसे वरिष्ठ वामपंथी नेता ने भी यही दर्द बयां किया है। आखिरकार कांग्रेस को इस पीड़ा पर ध्यान देना ही होगा, देश के सामने सवालों का पहाड़ खड़ा हो गया है। लोग पीड़ित हैं। फिर भी मोदी की भाजपा जीत गई। लोग कहते हैं कि ये जीत असली नहीं है। जब यह सब हो रहा है तो इंडिया गठबंधन वास्तव में क्या कर रहा है? वर्षा ऋतु में पैदा होने वाले केंचुए या मेंढक वर्षा ऋतु समाप्त होते ही नष्ट हो जाते हैं। हमारा मानना है कि चुनाव के लिए गठित ‘इंडिया’ जैसे गठबंधनों का जीवन छोटा नहीं होना चाहिए, बल्कि सदैव राष्ट्रीय कार्य के लिए समर्पित रहना चाहिए। मोदी अडानी जैसे उद्योगपति मित्रों को और अमीर बनाने के लिए अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। मोदी सभी पार्टियों के भ्रष्ट भ्रष्टाचारियों को भाजपा की वॉशिंग मशीन में डाल रहे हैं। मोदी काल में न्यायालय, चुनाव आयोग, संसद, विधानसभा, संविधान सभी की प्रतिष्ठा कलंकित हो गई है। धर्मांधता और कट्टरवाद को बढ़ाकर लोगों को भड़काकर चुनाव जीते जा रहे हैं। इन सबके खिलाफ लोगों के गुस्से के बावजूद अगर ‘इंडिया’ गठबंधन सबके साथ चुपचाप बैठा रहा तो इतिहास आपको माफ नहीं करेगा। चुनाव आएंगे, चुनाव जाएंगे, लेकिन इंडिया गठबंधन को उन राजनीतिक माफियाओं के खिलाफ युद्ध का शंखनाद करना होगा जो चुनावों को ‘हाईजैक’ करके देश पर कब्जा कर रहे हैं और इसके लिए अपनी डफली अपने राग को खत्म करने की जरूरत है। दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच चुनाव का सामना हो सकता है, लेकिन केजरीवाल को देशद्रोही कहना और इसे प्रचार का मुद्दा बनाना कांग्रेस की संस्कृति को शोभा नहीं देता। यदि कांग्रेस ‘अकेले’ मोदी रवैये को हराने की क्षमता रखती है, तो उन्हें कोई रोकेगा नहीं। उन्हें ऐसा करना ही चाहिए, फिर भी महाराष्ट्र जैसे राज्य को माफिया तरीके से जीतना दिखाता है कि भाजपा और उससे जुड़े गिरोह किस तरह की राजनीति करते हैं। इस विकृति से लड़ने के लिए हमें एकता की वङ्कामूठ, इंडिया गठबंधन के नेतृत्व और यदि संभव हो तो एक संयोजक की आवश्यकता है। वरना सब कुछ बर्बाद हो जायेगा। ऐसा होने दिया जाए या नहीं यह अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सोचना चाहिए। इसलिए संवाद बनाए रखें यही हाथ जोड़कर विनम्र प्रार्थना है!