मुख्यपृष्ठखेलक्लीन बोल्ड  : जजों की जागीर मुक्केबाजी

क्लीन बोल्ड  : जजों की जागीर मुक्केबाजी

अमिताभ श्रीवास्तव

एक इवेंट में पांच-पांच जज और सबके दिए नंबरों के आधार पर निर्णय देने की विधि मुक्केबाजी जैसे खेल में अच्छी तो लगती है मगर यह जजों को मुक्केबाजी की जागीर देने जैसा है। इसका उदाहरण है यह सवाल कि हिंदुस्थान ओलिंपिक में मेडल क्यों नहीं ला पाता? इन्हीं जजों के गलत निर्णय से, पक्षपाती होने से। निशांत देव हो या निकहत दोनों यदि अपना मैच हारे तो इन्हीं जजों के पक्षपाती फैसलों से मगर दुनिया को थोड़ी न पता चलता है कि आखिर माजरा क्या है। निशांत देव की बाउट में दो दौर जीत लेने के बावजूद हार जाने का अर्थ यह नहीं कि निशांत के मुक्के नहीं चले, बल्कि फैसले पर जजों के पहले ही सोचे जा चुके निर्णय चले। दरअसल, विश्व मुक्केबाजी में हिंदुस्थान के खिलाफ न जाने क्यों एक विरोधी भावना है, ऐसा अब लगने लगा है। पेरिस ओलिंपिक के महज ये दो मुकाबले देख लें निकहत और निशांत के तो पता चलेगा कि मुक्के मारे तो हिंदुस्थानियों ने मगर जीते विरोधी। कैसे? निर्णय आने से पूर्व कोच जीत की खुशी मनाने लगते हैं, कैसे? जबकि खुद मुक्केबाज को पता नहीं रहता कि निर्णय क्या होगा? इसलिए कहा जा सकता है कि यूरोप का मुक्केबाजी पर अपना कब्जा है, हिंदुस्थानी मुक्केबाज नहीं जीतेंगे ओलिंपिक में यह तय लगता है।
मैं थका हुआ बूढ़ा आदमी हूं
चिराग-सात्विक की जोड़ी बैडमिंटन के डबल्स मुकाबलों से पहले ही बाहर हो गई थी जबकि उनसे उम्मीद बंध गई थी किसी मेडल की। ऐसा हो न सका। उनके कोच ने अपने खिलाड़ियों को ओलिंपिक से बाहर होते देख संन्यास ले लिया। जी हां, यह संन्यास सुर्खियों में है। सात्विक साईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की बैडमिंटन पुरुष युगल जोड़ी के पेरिस ओलंपिक २०२४ से बाहर होने के बाद उनके कोच मैथियास बोए ने कोचिंग से संन्यास लेने की घोषणा की है। उन्होंने यह जानकारी सोशल मीडिया पर दी। लंदन ओलिंपिक २०१२ के रजत पदक विजेता डेनमार्क के ४४ वर्षीय बोए ने लिखा, मेरे लिए, कोचिंग के दिन यहीं खत्म हो जाते हैं, मैं कम से कम अभी भारत या कहीं और नहीं जा रहा हूं। मैंने बैडमिंटन हॉल में बहुत अधिक समय बिताया है और कोच बनना भी काफी तनावपूर्ण है, मैं एक थका हुआ बूढ़ा आदमी हूं। बोए टोक्यो ओलिंपिक से पहले सात्विक-चिराग से जुड़े थे।
गर्दन पर आकाश की सीमा
बैडमिंटन की दुनिया के सबसे फुर्तीले खिलाड़ी बन चुके हिंदुस्थानी लक्ष्य सेन की गर्दन सुर्खियों में है। उत्तराखंड के लक्ष्य ने ओलिंपिक में अपने करिशमाई खेल से विश्व को न केवल चौंका दिया है बल्कि दस्तक दे दी है कि भविष्य उनका है। लक्ष्य की गर्दन सुर्खियों में इसलिए है कि उन्होंने यहां टैटू गुदवा रखा है। यह कोई चित्र नहीं है बल्कि ऐसा मंत्र है, जो आकाश की सीमा तय करता है। २२ साल के युवा बैडमिंटन सनसनी लक्ष्य सेन यदि अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं करते हैं तो इसलिए क्योंकि वो तो हमेशा आगे और आगे बढ़ते रहना चाहते हैं। बस इसी बात का पता उनकी गर्दन पर बने टैटू से चलता है। लक्ष्य ने गर्दन पर एख्भ् घ्ए ऊप्E थ्घ्श्घ्ऊ लिखवाया हुआ है। इसका मतलब होता है आपकी कामयाबी की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए, आसमान की ऊंचाई तक बढ़ते जाओ, जिसकी कोई सीमा नहीं होती।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

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