अमिताभ श्रीवास्तव
तीन मैच खेल चुके सूर्यकुमार यादव दो मैचों में शून्य पर आउट हुए हैं। तो क्या एक मैच जिसमें उनका अर्धशतक था, उसके आधार पर उन्हें विश्वकप के लिए बेहतर माना जा सकता है? हालांकि, अभी कई मैच शेष हैं किंतु सूर्या को टीम में रखना एक बड़ा रिस्क होगा। ये मुंबई टीम की बात नहीं हो रही, बल्कि टीम इंडिया की बात हो रही है, जो विश्वकप में उतरेगी। आईपीएल से खिलाड़ियों की परख हो रही है। चयन समिति उन सारे खिलाड़ियों पर अपनी नजर बनाए हुए है, जिनकी संभावनाएं हैं। संभावनाओं में सूर्यकुमार यादव का प्रतिशत फिलहाल ज्यादा माना जा रहा है, किंतु इसके बावजूद कई समीक्षकों का मानना है कि सूर्या को लेना रिस्की भी हो सकता है। इसके पीछे की जो वजह सामने आ रही है, वो यह कि बड़े मैचों में सूर्यकुमार का खेल किसी मुख्य उद्देश्य के लिए नहीं होता, बल्कि गेंद को बाउंड्री पार कराने की एकसूत्रीय शैली लिए होता है, जिसमें बल्ले से गेंद लग गई तो लग गई वरना आउट होते भी देर नहीं लगती। ऐसे अनिश्चितता के लिए बल्लेबाज को टीम में रखना वाकई बड़ी चुनौती है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे के मैचों में सूर्या कोई कमाल दिखा पाते हैं या नहीं और ये मैच ही उनकी किस्मत को निर्धारित करेंगे।
आईपीएल कहीं करियर को न ले बैठे
आईपीएल में हार्दिक पंड्या की कप्तानी प्रभावहीन साबित हो रही है और यही बात उनके करियर के लिए ठीक नहीं है। अब तक वन डे या कम से कम टी-२० के लिए हार्दिक को टीम इंडिया के भविष्य के कप्तान के रूप में देखा जाता रहा है, मगर आईपीएल उनकी इस संभावनाओं को शून्य बनाता जा रहा है। यह निर्विवाद रूप से सच है और खुद हार्दिक को भी लग रहा होगा कि उनकी कप्तानी दिशाविहीन है। सूर्यकुमार के टीम में शामिल होने के बाद जिस अंदाज में उन्होंने अपनी जीत को लेकर विश्वास व्यक्त किया था वो अब तक सही साबित नहीं हो पाया है। उनके खुद के खेल में भी कोई लय नहीं दिख रही है। बल्लेबाजी, गेंदबाजी में हार्दिक लगभग असफल हैं। कप्तानी के लिहाज से उनके मैदान पर लिए जा रहे निर्णय भी प्रभावशाली साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसे में क्या उन्हें टीम इंडिया की कप्तानी के लिए भविष्य का खिलाड़ी माना जा सकता है? इसका जवाब फिलहाल नहीं में है और यही नहीं उनके करियर के लिए ठीक नहीं है।
बंदा हो तो धोनी जैसा!
हिंदुस्थानी क्रिकेट इतिहास में महेंद्र सिंह धोनी एक अलग पहचान रखते हैं। इसके लिए वो कड़ी मेहनत भी करते हैं और उन्हें अपनी मार्केटिंग कैसे करनी है यह भी खूब आता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि धोनी को चाहने वाले देश-विदेश में असंख्य हैं, मगर इन चाहने वालों को बनाए रखने के लिए धोनी ऐसे किसी भी अवसर को हाथ से जाने नहीं देते जो उन्हें इनसे भावनात्मक तरीके से जोड़कर रखे। यही तो खासियत है इस बंदे की। जब बंदे की यह खासियत है तो उनकी टीम क्यों पीछे रहे। चेन्नई प्रबंधक भी उनके ऐसे मौकों पर किए जाने वाले कार्यों को भुनाते हैं। चाहे फिर वो मैदान पर अपने किसी फैंस से मिलना हो या पैवेलियन जाते समय दर्शकों की ओर से बाहर आ गई गेंद को उठाकर वापिस देना हो। ये बड़े यादगार दृश्य होते हैं, जिन्हें धोनी आजमाते हैं और प्रशंसक याद रखते हैं। इसके बाद फ्रेंचाइजी वाले बाजार बनाकर फायदा उठाते हैं। बहरहाल, धोनी जैसा कोई नहीं है ये बात तो तय हो चुकी है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)