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बच्चों के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलता है कॉक्लियर इंप्लांट!

संदीप पांडेय / मुंबई
संचार मानव जीवन का मूल आधार है और सुनने की क्षमता इसके सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। ध्वनि के माध्यम से मस्तिष्क के श्रवण केंद्रों का विकास होता है, लेकिन यदि कोई बच्चा जन्म से ही नहीं सुन पाता, तो उसका संज्ञानात्मक विकास बाधित हो सकता है। ऐसे में चिकित्सा क्षेत्र में श्रव्या कॉक्लियर इंप्लांट प्रोग्राम एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बनकर उभर रहा है, यानी बच्चों के लिए नई संभावनाओं का द्वार कॉक्लियर इंप्लांट खोलता है।
मुंबई के कुर्ला (पश्चिम) स्थित क्रिटीकेयर एशिया हॉस्पिटल के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. संजय हेलाले और डॉ. सईदा खान की टीम ने जन्मजात श्रवण दोष से पीड़ित ९ महीने की बच्ची नव्या भावर का सफल कॉक्लियर इंप्लांट किया। नव्या जन्म से ही सुनने की क्षमता में कमी से ग्रसित थी, जिसकी जानकारी उनके माता-पिता को तब हुई जब वह महज पांच महीने की थी। डॉ. हेलाले के अनुसार, यह प्रक्रिया कई परीक्षणों के बाद ३ घंटे में सफलतापूर्वक पूरी की गई।
शुरुआती ३ साल होते हैं `गोल्डन पीरियड’
डॉ. हेलाले ने बताया कि जन्मजात श्रवण दोष वाले बच्चों के लिए जीवन के शुरुआती तीन साल कॉक्लियर इंप्लांट के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। इस अवधि में किए गए इंप्लांट से बच्चों की सुनने और बोलने की क्षमता में सुधार की संभावना अधिक होती है। डॉ. हेलाले ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे समाज में अभी भी श्रवण दोष को लेकर जागरूकता की कमी है।
कॉक्लियर इंप्लांट कैसे करता है काम
कॉक्लियर इंप्लांट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो आंतरिक कान में शल्य चिकित्सा द्वारा प्रत्यारोपित किया जाता है। यह उपकरण श्रवण क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे बहरे बच्चे भी सुनने और बोलने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं।

आरएमएमएमआरटी ट्रस्ट बना वरदान
कॉक्लियर इंप्लांट का खर्च आमतौर पर ८ लाख रुपए तक आता है, जो कई परिवारों के लिए वहन करना मुश्किल हो सकता है। आरएमएमएमआरटी ट्रस्ट के जरिए श्रव्या कॉक्लियर इंप्लांट प्रोग्राम चलाया जा रहा है, जिसमें कॉक्लियर इंप्लांट का खर्च संस्था उठाती है। संस्था तीन साल से कम उम्र के गरीब बच्चों के लिए इंप्लांट प्रâी देती है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन स्वामी हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने किया था और आज उन्हीं के आशीर्वाद से अनवरत जारी है।

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